Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, तीर्थगुरु श्रीपुष्करराजजी में निवास करने की भी बहुत महिमा है। भक्ति के चार चरण हैं – नाम, रूप, लीला, धाम। भगवान का नाम जपना भक्ति का एक चरण है। भगवान का दर्शन करना भक्ति का दूसरा चरण है। भगवान की लीलाओं को सुनना गाना श्रीरामायण श्रीभागवत के माध्यम से ये भक्ति का तीसरा चरण है। भगवान के तीर्थ का दर्शन करना, वहां जितना भी समय हो निवास करना, ये भक्ति का चतुर्थ चरण है। भक्ति चतुष्पाद है।
जैसे चौकी के चारपाये होते हैं, इसीलिए उसको चौकी कहते हैं। चौकी को खींचने के लिए चारों पाया पकड़ना आवश्यक नहीं है, उसमें से एक भी पाया पकड़ करके खींचा जाये तो भी पूरी चौकी ही आ जाती है। इसी तरह भक्ति के चार चरण हैं। भक्ति के चार चरण में से एक का भी आश्रय ले लेने से भगवान की सम्पूर्ण भक्ति प्राप्त होती है। हम भगवान के नाम का जाप करें, इससे भी हमारा कल्याण होगा। हम भगवान का दर्शन करें, इससे भी कल्याण होगा।
हम भगवान की लीलाओं का दर्शन, चिंतन, श्रवण और गायन करें, इससे भी कल्याण होगा। और हम भगवान के तीर्थ का दर्शन करने जायें, वहाँ निवास करें, इससे भी कल्याण होता है। तीर्थवासी भी तीन प्रकार के होते हैं। प्रथम- वे जिनका तीर्थ में जन्म हुआ और जीवन भर तीर्थ में वास किया। दूसरा – जन्म कहीं भी हुआ लेकिन तीर्थ में जाकर वास करते हैं और तीसरा जो तीर्थ के प्रति निष्ठा रखते हैं, समय-समय पर दर्शन करने पधारते हैं, वे भी उस तीर्थ के वासी माने जाते हैं।
किसी भी तीर्थ का हमारा नियम हो बहुत अच्छी बात है, लेकिन पुष्कर दर्शन का नियम होने से, समस्त तीर्थो के दर्शन का पुण्य फल प्राप्त होता है। श्रीपुष्करराजजी समस्त तीर्थो के गुरु हैं। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).