भगवत प्राप्ति की उत्कट अभिलाषा ही है भगवत दर्शन का मूल्य: दिव्य मोरारी बापू 

Shivam
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Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, मनुष्य जन्म का फल है, भगवत प्राप्ति, भगवत साक्षात्कार, भगवत दर्शन, यही मनुष्य जन्म का फल है। भगवत प्राप्ति कैसे हो? प्राप्ति का मूल्य क्या है? प्राप्ति का मूल्य है, लौल्य। नारद भक्ति सूत्र में देवर्षि श्रीनारदजी ने कहा-
लौल्यमेव तस्य मूल्यम्।
भगवत प्राप्ति की उत्कट अभिलाषा, यही भगवत दर्शन का मूल्य है। हम लोगों के हृदय में भगवान को पाने की अभिलाषा जगे। भगवान के दर्शन की अभिलाषा कैसे जागेगी? हम सबने कथा में सुना- वृंदावन में ऐसे मंदिर हैं, उत्सव होते हैं, वृंदावन की बहुत महिमा सुना।
अभी वृंदावन गये नहीं है, तो मन में ऐसा भाव जगता है इतना बढ़िया वृंदावन है, एक बार वृंदावन का दर्शन करके आवें।हम सबके मन में इच्छा हो जाती है। इसी प्रकार से भगवत चरित्रों के बारम्बार श्रवण से, संतों के, भक्तों के चरित्रों के बारम्बार श्रवण से भगवत प्राप्ति की इच्छा का उदय हो जाता है।
इतने सुंदर भगवान हैं। ऐसे भगवान हमें मिलने चाहिए। भगवान के नाम का जप, भगवत भागवत चरित्रों का श्रवण, ऐसी पवित्र कामना को अंतःकरण में जागृत करने का, बस यही उपाय है। कैसे पता लगे कि भगवान के दर्शन की भूमिका तैयार हो गयी है। जैसे हम-आप कहते हैं बिना पैसे के काम नहीं चलेगा, सब लोग कहते हैं। जब ऐसा लगे कि बिना भगवान के दर्शन के काम नहीं चलेगा, तो मानो भूमिका तैयार हो गई। ये भूमिका श्रीमीराबाई जी की तैयार हो गई। श्रीमीराजी अपने एक पद में कहती हैं-
हरि विन नाय सरे री काम।।
अब बिना हरि के काम नहीं चलेगा।
दरश विन दूखन लागे नैन।
शबद सुनत मेरी छतियां काँपे,भई छिमासी रैन।।
अखियां हरि दर्शन की प्यासी। देखन चहत कमल नैनन को,निशि दिन रहत उदासी।।
ये व्याकुलता ह्रदय में नहीं जगी है, तब तक दर्शन सम्भव नहीं है। एक भगवत प्राप्त संत कहते थे कि हमें भगवत प्राप्ति जैसी सरलता किसी चीज में नहीं दिखाई पड़ती। संसार के कामों में बड़ी कठिनाई है। भगवान की प्राप्ति में बड़ी सरलता है।संसार की कोई भी वस्तु प्रारब्ध और पुरुषार्थ के बिना प्राप्त हो जाये ये सम्भव नहीं है। केवल पुरुषार्थ से नहीं प्रारब्ध भी चाहिए। कई लोग बहुत पुरुषार्थ करते हैं तब भी उनको कुछ नहीं मिलता।
बहुत लोग पुरुषार्थ बहुत कम करते हैं, ज्यादा मिल जाता है। संसार की कोई वस्तु प्राप्त करने के लिये, प्रारब्ध और पुरुषार्थ दोनों आवश्यक है।इच्छा कर लेने मात्र से संसार की वस्तुएं कहाँ मिलती हैं? आप कुछ न करें, केवल इच्छा करें।
मन मोदकन की भूख बुझाई।
एकान्त में बैठकर लड्डू का चिंतन करो, नहीं मिलेगा। लेकिन एकान्त में बैठकर अपने आराध्य का चिंतन करो, भगवान मिल जायेंगे। अब बताओ! भगवान की प्राप्ति में कठिनाई है या संसार की वस्तुओं की प्राप्ति में कठिनाई है।
भगवान की प्राप्ति में बस एक कठिनाई है, भगवान की प्राप्ति की इच्छा उत्पन्न हो, इसी में कठिनाई है। इच्छा जगती है भगवत भागवतों के चरित्र श्रवण से और भगवत नाम जप से अंतःकरण की वो भूमिका बन जाती है जो भगवत दर्शन के लिए अपेक्षित है।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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