भारत के Pharma Export में America की बड़ी हिस्सेदारी, अप्रैल-फरवरी FY25 में इतना रहा आंकड़ा

Shivam
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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फार्मास्युटिकल में भारत का अमेरिका को निर्यात बढ़ा है. भारत यूएस को 47 प्रतिशत जेनेरिक मेडिसिन की सप्लाई करता है और यह अमेरिका के हेल्थकेयर सिस्टम का एक महत्वपूर्ण पार्टनर है. अप्रैल-फरवरी 2024-25 के दौरान भारत के फार्मास्युटिकल (फार्मा) निर्यात के लिए अमेरिका सबसे बड़ा गंतव्य बना रहा, जिसकी हिस्सेदारी 36.6% या 9.8 अरब डॉलर थी. अमेरिकी प्रशासन द्वारा फार्मा आयात पर टैरिफ लगाए जाने की आशंका के साथ भारतीय निर्यातक अपने बाजारों में विविधता लाने की कोशिश कर रहे हैं.

US मार्केट में हुआ इजाफा

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि अब फार्मा पर बड़ा टैरिफ लगाया जाएगा. फार्मास्युटिकल में एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया (फार्मेक्सिल) द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के मुताबिक, अप्रैल-फरवरी 2024-25 में अमेरिकी दवा बाजार में 14% की वृद्धि हुई है. इस दौरान, भारत का अमेरिकी निर्यात 9.8 अरब डॉलर रहा. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत अमेरिकी दवा मार्केट में कितनी मजबूत पकड़ रखता है. भारत की कई कंपनियों का कारोबार काफी हद तक अमेरिका पर निर्भर है, इसलिए ट्रंप के टैरिफ की घोषणा से उनमें घबराहट है.

अमेरिका से है कनेक्शन

अरबिंदो फार्मा के रेवेन्यू में अमेरिकी एक्सपोर्ट की महत्वपूर्ण हिस्सेदारी है. कंपनी अमेरिकी बाजार में जेनेरिक दवाओं की एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है. अरबिंदो फार्मा का करीब 48 प्रतिशत राजस्व अमेरिकी बाजार से आता है. सीएनबीसीटीवी 18 की रिपोर्ट के मुताबिक, सन फार्मा को यूएस मार्केट से 32 प्रतिशत, ग्लैंड फार्मा को 50 प्रतिशत, डॉ रेड्डी को 47%, Zydus Life को 46%, लुपिन को 37%, सिप्ला को 29% और टोरेंट फार्मा को 9 प्रतिशत रेवेन्यू मिलता है.

ट्रंप ने क्या कहा है ?

डोनाल्ड ट्रंप ने वॉशिंगटन डीसी में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि अमेरिका अब दवाइयों पर टैरिफ लगाने वाला है. उन्होंने कहा कि हम एक जरूरी कदम उठाने जा रहे हैं. जब हम दवाइयों पर भी टैरिफ लगाएंगे, तो विदेशी कंपनियां अमेरिका में दवा बनाने के लिए वापस लौटेंगी, क्योंकि यूएस सबसे बड़ा मार्केट है. उन्‍होंने कहा कि दवाओं पर टैरिफ से फार्मा कंपनियों पर दबाव पड़ेगा, जिससे वे चीन जैसे देशों से अपना कारोबार हटाकर अमेरिका में फैक्ट्रियां लगाएंगी. बता दें कि दुनिया में सबसे ज्यादा दवाइयां चीन, भारत और यूरोप में बनती हैं.

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