हमारे सौर मंडल का दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है शनि. यह अपनी शानदार छल्लों के वजह से सबसे आकर्षक और प्रसिद्ध है. वहीं पृथ्वी अपने नीले महासागरों और जीवन के लिए जानी जाती है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि कभी पृथ्वी के पास भी शनि ग्रह की तरह छल्ले थे. वैज्ञानिकों ने नई स्टडी में इसका खुलासा किया है. अर्थ एंड प्लैनेटरी साइंस लेटर्स में प्रकाशित नया शोध इस बात का सबूत देता है कि लगभग 46 करोड़ साल पहले, पृथ्वी पर एस्टेरॉयड से बना एक रिंग सिस्टम रहा होगा. यह लाखों वर्षों तक अस्तित्व में रहा होगा और इससे पृथ्वी की जलवायु भी प्रभावित हुई होगी.
कैसे बने गड्ढे
मोनाश यूनिवर्सिटी के भूविज्ञानी एंड्रयू टॉमकिन्स ने कहा कि अर्थ एंड प्लेनेटरी साइंस लेटर्स में पिछले सप्ताह प्रकाशित एक शोध में मेरे टीम और मैंने यह सबूत पेश किया कि पृथ्वी के चारों ओर एक छल्ला रहा होगा. यह पृथ्वी के इतिहास की कई पहेलियों को सुलझा सकता है. लगभग 46.6 करोड़ साल पहले बहुत सारे उल्कापिंड पृथ्वी से टकराने लगे थे. हम यह जानते हैं क्योंकि भूवैज्ञानिक रूप से संक्षिप्त अवधि में इसके असर से पृथ्वी पर कई गड्ढों का निर्माण हुआ. इसी अवधि में हमें रूस, यूरोप और चीन में चूना पत्थर के भंडार भी मिले, जिनमें एक तरह के उल्कापिंड का बहुत ज्यादा मलबा था.
इन तलछटी चट्टानों में उल्कापिंड के मलबे से संकेत मिलता है कि वे आज गिरने वाले उल्कापिंडों के मुकाबले बहुत कम समय के लिए अंतरिक्ष रेडिएशन के संपर्क में थे. इस दौरान कई सुनामी भी आईं, जैसा कि अन्य असामान्य अव्यवस्थित तलछटी चट्टानों में देखा जा सकता है. हमारा मानना है कि ये सभी विशेषताएं एक-दूसरे से जुड़े हैं.
एस्टेरॉयड से बने रिंग का कैसे पता चला?
वैज्ञानिक उल्कापिंड के असर से निर्मित 21 गड्डों के बारे में जानते हैं. टॉमकिन्स ने बताया कि हम देखना चाहते थे कि क्या उनके स्थान में कोई गौर करने वाली बात है. अतीत में पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेटों की एक्टिविटी के मॉडल का उपयोग करके उन्होंने यह पता लगाया कि जब ये सभी गड्डे पहली बार बने थे तो वे कहां थे. उन्होंने पाया कि सभी गड्ढे उन महाद्वीपों पर हैं जो इस अवधि में भूमध्य रेखा के करीब थे और कोई भी गड्ढा ऐसे जगहों पर नहीं है जो ध्रुवों के करीब थे. अत: सभी गड्ढे भूमध्य रेखा के करीब बने थे.
ग्रह के छल्ले कैसे बने
सभी जानते होंगे कि केवल शनि के पास ही छल्ले नहीं हैं. अरुण, वरुण और बृहस्पति में भी थोड़े छल्ले हैं. कुछ वैज्ञानिकों की मुताबिक, मंगल ग्रह के छोटे चंद्रमा, फोबोस और डेमोस, एक प्राचीन छल्ले के अवशेष हो सकते हैं. जब कोई छोटा पिंड (क्षुद्रग्रह की तरह) किसी बड़े पिंड (ग्रह की तरह) के पास से गुजरता है, तो गुरुत्वाकर्षण के वजह से वह खिंच जाता है. अगर यह बहुत पास आ जाता है, तो छोटा पिंड कई छोटे टुकड़ों में टूट जाएंगे. ये सभी टुकड़े धीरे-धीरे बड़े पिंड की भूमध्य रेखा की चक्कर लगाते हुए एक छल्ले में विकसित हो जाएंगे. समय के साथ छल्ले में मौजूद सामग्री बड़े हिस्सों पर गिरेगी, जहां बड़े टुकड़ों से गड्ढों का निर्माण होगा. ये गड्ढे भूमध्य रेखा के पास होंगे.
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