यूपी के इस जिले में लगता है गधों का मेला, विधि विधान से होती है गदर्भ की पूजा; जानिए

Abhinav Tripathi
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Sub Editor, The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Ajab Gajab Fair, अंकित मिश्रा/ कौशांबी: देश में कई जगह कई तरह के अद्भुत मेले लगते हैं, लेकिन कौशांबी में लगने वाले जिस गर्दभ मेले के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, उसके बारे में जानकर आप दंग रह जाएंगे. आपने कभी सोचा भी नहीं होगा कि भारत में जिस गर्दभ को सब अपशब्द कहके भगाने का प्रयास करते हैं और गधा कहके लोगों को भी मूर्ख कि श्रेणी देते हैं, उसी गर्दभ की इस गर्दभ मेले मे पूजा होती है.

दरअसल, कौशांबी स्थित 51 शक्तिपीठों में से एक मां शीतला देवी के दरबार धाम कड़ा में गधों की खास पूजा की जाती है. इसी के साथ देश भर से गधों के व्यापारी आते हैं. यहां पर होने वाले गधों की पूजा के पीछे का मुख्य कारण है कि गधा मां शीतला देवी का वाहन और 51 शक्तिपीठों में कड़ाधाम भी एक शक्तिपीठ है. ये शीतला मां का मंदिर विश्व प्रसिद्ध है. माना जाता है कि यहां अनादि काल से चैत्र माह में तीन दिवसीय विशाल गर्दभ मेले का आयोजन होता आ रहा है.

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हर साल लगता है गधों का मेला

कौशांबी जिले में लगने वाले इस मेले में धोबी समाज के लोग न केवल गर्दभों की खरीद फरोख्त करते हैं, बल्कि इसी मेले मे वो अपने बेटी बेटों एवं बहनों का विवाह भी तय कर लेते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस मेंले में तय किए गए रिश्ते काफी सुखद एवं सफल रहते हैं.

कौशांबी जिले के ऐतिहासिक एवं पौराणिक स्थल शक्तिपीठ कड़ाधाम स्थित मां शीतला के धाम में लगने वाले गधों के इस विशाल मेले में कई प्रदेशों से व्यापारी गधे बेचने और खरीदने आते हैं. इस मेले को पूरे देश में गर्दभ अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है.

मां गंगा के पावन तट पर स्थित मां शीतला के धाम का यह अद्भुत मेला प्रतिवर्ष चैत्र महीने के प्रथम कृषणपक्ष में षष्ठी तिथि से लेकर अष्टमी तक लगता है. एक खास विरादरी के लोगों के अलावा अन्य गर्दभ मालिकान चैत्र महीने में कृष्ण पक्ष की पंचमी से ही अपने गधों को बेचने के लिए इस मेले में आने लगते है.

कौशांबी में लगने वाले गधों को पहले गंगा में स्नान कराते हैं. इसी के साथ स्वयं भी गंगा में डुबकी लगाते हैं, फिर रंग बिरंगे रंगो और सजावटी समानों से सजाकर गर्दभ को बेचने के लिए ले जाते हैं. इस मेले में हजारों की संख्या में गधे पहुंचते हैं. इस वजह से सभी व्यापारी अपने अपने कदमों को एक विशेष प्रकार के कोड का इस्तेमाल कर उन्हें एक खास कोड के रंगों से रंगते हैं. इसका फायदा होता है कि गधों को भीड़ में पहचानने में दिक्कत नहीं होती है. इस मेले में उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों के अलावा राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, बिहार, जम्मू कश्मीर, छत्तीसगढ़ और अन्य प्रान्तों से व्यापारी खरीदारी के लिए आते हैं.

कहां होता है गधों का प्रयोग

मेले में पंजाब व अन्य प्रदेशों से आये व्यापारी बताते हैं कि वैष्णों देवी की यात्रा के लिए कड़ाधाम के गर्दभ मेला से खरीदे गए खच्चर बहुत ही उपयोगी होते हैं. शक्तिपीठ कड़ा धाम के तीर्थ पुरोहित रामायणी प्रसाद पंडा ने बताया कि है कि जो भी भक्त कड़ा धाम पावन गर्दभ मेला मे आकर सच्चे मन से मां शीतला के वाहन गर्दभ महराज को दूध और घास खिलातें हैं. ऐसा करने से उनके परिवार के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. माता शीतला की विशेष कृपा भी उन्हें प्राप्त होती है. कुल मिलाकर कड़ा धाम में लगने वाला गर्दभ मेला अपने आप में काफी अद्भुत है.

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