Ajab Gajab News: छात्र जीवन में सबसे बड़ा लक्ष्य होता है कि हर परीक्षा में अच्छा अंक हासिल किया जा सके. एग्जाम में अच्छा अंक पाने के लिए तमाम प्रयास किए जाते हैं. बच्चे दिन रात मेहनत कर के अच्छा अंक पाने के लिए प्रयासरत रहते हैं. कई बार बच्चें अपनी मेहनत के बदौतल कमाल कर जाते हैं, लेकिन कई बच्चों को कम अंको से ही संतोष करना पड़ता है. इन सब के बीच उस वक्त क्या हो जब स्कूल ही मार्किंग सिस्टम में गड़बड़ी कर दें और मेहनती बच्चे को शून्य अंक मिले. अब आप कहेंगे ये कैसे हो सकता है. हालांकि एक ऐसा ही मामला सामने आया है.
दरअसल, एक ऐसा ही मामला हरियाणा के गुरुग्राम के स्कूल से जुड़ा हुआ सामने आया है. यहां पर स्कूल ने 10वीं की बोर्ड में एक ही नाम की दो छात्राओं को मार्क देने में गलती कर दी. एक छात्रा को पास कर दिया और दूसरी छात्रा को शून्य दे दिया. इस मामले की जानकारी पीड़ित छात्रा के परिजनों ने शिकायत की तो स्कूल ने अपनी गलती मानने से इनकार कर दिया. इसके बाद छात्रा ने हाईकोर्ट का रुख किया.
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पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में हुई सुनवाई
जब स्कूल में शिकायत करने के बाद भी समस्या का निस्तारण नहीं हुआ तो उसके परिजनों ने पंजाब-हरियाणा हाइकोर्ट का रुख किया. मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि गलती से ना सिर्फ याची के भविष्य पर असर पड़ा बल्कि शिक्षा बोर्ड को भी शर्मसार होना पड़ा. मामले में टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने स्कूल पर 30000 रुपये का जुर्माना भी लगाया.
स्कूल पर मानहानि का लगा था आरोप
बता दें कि याचिकाकर्ता छात्रा ने कोर्ट में दायर याचिका में कहा कि कोरोना काल के दौरान स्कूल बंद थे. विद्यालय ने इंटरनल असेसमेंट के नंबर बोर्ड को भेजे थे. स्कूल द्वारा एक ही नाम की दो छात्राओं के नंबर को बोर्ड की साइट पर अपलोड किए. एक छात्रा को शून्य दिए गए दूसरी को पास किया गया. सबसे खास बात ये है कि जो दूसरी छात्रा थी वो स्कूल एक साल पहले ही छोड़ चुकी थी. स्कूल की गलती का असर यह हुआ कि बोर्ड ने दोबारा से संशोधित रिजल्ट नहीं जारी किया.
पीड़िता ने बताया कि कोर्ट के फैसले के बाद वो राहत की सांस ले रही है. उसने बताया कि स्कूल की गलती का प्रभाव ये हुआ की उसके न केवल कम मार्क्स आए बल्कि उसे आगे प्रवेश लेने में भी दिक्कत का सामना करना पड़ा. छात्रा ने कहा कि उसने कई बार स्कूल के चक्कर लगाए बावजूद इसके स्कूल ने गलती को नहीं सुधारा. वो छात्रा को ही कसूरवार बताते रहे. जब ना उम्मीदी बढ़ी तो उसने अदालतक का रूख किया.