Holi 2024: इस गांव में होली की अनोखी परंपरा… गधे की सवारी करते हैं ‘दामाद जी’

Raginee Rai
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Holi 2024 Celebration: रंगोत्‍सव होली देशभर में बड़े ही हर्षोल्‍लास के साथ मनाया जाता है. होली आने से पहले ही इसका रंग चारो ओर दिखने लगता है. मथुरा वृंदावन में तो एक महीने पहले से ही इसकी धूम देखने को मिलती है. ब्रज की होली देखने के लिए देश विदेश से लोग आते हैं. अलग-अलग जगहों पर होली मनाने की अलग-अलग परंपरा है. भारत के कई इलाकों में लोग अनोखे तरीके से होली (Holi 2024) मनाते हैं. इसी कड़ी में आज हम आपको एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं जहां की होली परंपरा जानकार आप हैरान हो जाएंगे. आइए जानते हैं इस गांव और अनोखी होली के बारे में…

यहां अजीबो गरीब होली मनाने की परंपरा

महाराष्ट्र राज्‍य में एक गांव है, जहां पर अजीबो गरीब होली मनाई जाती हैं. यहां होली मनाने की अजीब परंपरा 86 साल पहले से चली आ रही है. बीड जिले के केज तहसील के विदा गांव में इन अजीबो गरीब प्रथा को निभाई जाती है.

दामाद को गधे पर बैठाकर कराते हैं सैर

बीड में होली खेलने का ये अजीब प्रथा 86 साल से भी पहले की है. यहां पर होली के दिन घर के नए दामाद को गधे पर बैठाकर पूरे गांव में घुमाया जाता है. फिर होली भी खेली जाती है. दामाद को उसकी पसंद की कपड़े भी पहनाते हैं. होली की इस परंपरा को यहां के लोग बड़े ही हर्षोल्लास से मनाते हैं. गांव के नए दामाद को गांव आकर होली मनाने के लिए खास निमंत्रण भेजा जाता है.

क्यों मनाई जाती है यह परंपरा?

स्थानीय लोगों के मुताबिक, लगभग 86 साल पहले महाराष्ट्र के बीड जिले में विडा येवता गांव में एक देशमुख परिवार रहता था. देशमुख परिवार में एक बेटी थी, उसकी शादी के बाद पहली होली के मौके पर जब बेटी, दामाद घर आए, तो दामाद ने होली खेलने से इंकार कर दिया. दामाद को होली खेलने के लिए ससुर ने खूब मनाया. जब दामाद राजी हुआ तो उसके ससुर ने फूलों से सजा एक गधा मंगवाकर उसपर अपने दामाद को बैठाकर पूरे गांव में घुमाया और साथ ही खूब होली खेली.

कहां से शुरू हुई ये प्रथा?

स्थानीय लोगों के अनुसार, कहा जाता है कि इस प्रथा की शुरुआत आनंदराव देशमुख नाम के एक व्‍यक्ति ने की थी. उन्हें गांव के लोग बहुत सम्मान देते थे. नए दूल्हे को गधे की सवारी कराने की परंपरा आनंदराव के दामाद से ही शुरू हुई थी. तब से अभी तक चली आ रही है. इसमें गधे की सवारी गांव के बीच से शुरू होती है और हनुमान मंदिर पर जाकर पूरी होती है. इस परंपरा में दामाद जी को उनकी पसंद के कपड़े दिए जाते हैं.

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