Lohri Festival 2024: कौन हैं दुल्ला भट्टी जिनकी कहानी के बिना अधूरा है लोहड़ी का त्योहार? जानिए

Raginee Rai
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Lohri Festival 2024 Dulla Bhatti Story: हर साल जनवरी महीने में लोहड़ी का त्‍योहार हर्षोल्‍लास के साथ मनाया जाता है.  वैसे तो यह त्‍योहार 13 जनवरी का मनाया जाता है लेकिन इस बार पंचांग के हिसाब से ये पर्व 14 जनवरी को बनाना बेहतर है. हालांकि कुछ लोग लोहड़ी 13 जनवरी तो कुछ 14 जनवरी को मनाएंगे. लोहड़ी के दिन लोग आग जलाकर नाचते-गाते हुए उसकी परिक्रमा करते हैं.

अग्नि में गुड़, मूंगफली, रेवड़ी, गजक आदि डालते हैं. लोहड़ी से जुडी कई लोक कथाएं प्रचलित हैं. इन लोककथाओं का ज़िक्र लोहड़ी के लोकगीतों में होता है. उन्हीं लोकगीतों में दुल्ला भट्टी का भी जिक्र होता है. दुल्‍ला भट्टी के बिना यह त्‍योहार अधूरा माना जाता है. आज के आर्टिकल में हम आपको बताने जा रहे हैं दुल्ला भट्टी की कहानी.

दुल्ला भट्टी और लोहड़ी का संबंध

कहा जाता है कि लोहड़ी होलिका की बहन थी, जो भक्त प्रह्लाद के साथ आग से बच गई थी. अन्य मान्यताओं के मुताबिक, इस त्योहार का नाम लोई के नाम पर रखा गया था, जो संत कबीर की पत्नी का नाम था. इसीलिए लोग हर वर्ष यह त्‍योहार मनाने के लिए आग जलाते हैं. लेकिन लोहड़ी का त्यौहार दुल्ला भट्टी के ऐतिहासिक चरित्र से भी जुड़ा हुआ है.

दुल्‍ला-भट्टी की कहानी

लोहड़ी का त्योहार दुल्‍ला-भट्टी की कहानी के बिना अधूरा माना जाता है. लोककथाओं के मुताबिक, मुगल बादशाह अकबर के शासन काल में पंजाब में दुल्ला भट्टी नाम का एक व्‍यक्ति रहता था. दुल्‍ला भट्टी ने अकबर के शासनकाल के दौरान मुगल शासन के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया था. कहा जाता है कि मुगल शासक हुमायूं ने दुल्ला के जन्म से चार महीने पहले उसके पिता फरीद खान और दादा संदल भट्टी को जान से मार दिया था. मुगलों को कर देने का विरोध करने पर उनकी हत्‍या की गई थी.

उनकी मौत का बदला लेने के लिए दुल्ला भट्टी उस युग का रॉबिनहुड बन गया. वह अकबर के जमींदारों से माल लूटकर गरीबों और जरूरतमंदों में बांट देता था. अकबर दुल्‍ला को डाकू के रूप में देखता था. इसके अलावा उस समय गुलाम बाजारों में महिलाओं को बेचा जाता था, उनको बचाने के लिए भी दुल्‍ला भट्टी को जाना जाता है. दुल्‍ला ने गांव के लड़कों से उन महिलाओं की शादी तय कराई और आर्थिक मदद भी किया. लोककथाओं के मुताबिक, दुल्ला भट्टी इतना शक्तिशाली था कि अकबर की 12 हजार की सेना उसे पकड़ नहीं पाई, इसलिए वर्ष 1599 में लड़ाई के दौरान उसे धोखे से पकड़ लिया गया. उसे फांसी की सजा दी गई. इसलिए लोहड़ी पर्व पर लोग दुल्ला भट्टी और उनके बलिदान को याद करते हैं.

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