Nag Diwali: भारत को त्योहारों का देश भी कहते है, क्योंकि यहां अलग-अलग धर्म, सभ्यता और संस्कृति से जुड़े लोग निवास करते हैं. अलग अलग रीति-रिवाज और मान्यताएं भारत को विभिन्न त्योहारों का गढ़ बनाता है. इनमें से कुछ परंपराएं इतनी अजीबोगरीब और अनोखी होती हैं, जिनके बारे में जानकर आश्चर्य भी होता है. इनमें से ही एक अनोखा त्यौहार है नाग दिवाली. जी हां, अभी तक तो आपने दीपावली और देव दिवाली के बारे में सुना होगा, लेकिन नाग दिवाली (Nag Diwali) का नाम शायद ही किसी ने सुना होगा. तो चलिए आज की खबर में हम आपकों बता रहे हैं नाग दिवाली के बारे में.
नाग दिवाली उत्तराखंड के चमोली जिले में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है. यह त्योहार प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष या अगहन माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है. इस दिन नागों की विशेष पूजा की जाती है.
क्या है पौराणिक मान्यता?
नाग दीपावली पर नागों के पूजन का विधान है. पौराणिक मान्यतानुसार, नागों को पाताललोक का स्वामी माना जाता है. इस मौके पर घरों में रंगोली बनाकर नाग के प्रतीक के सामने दीपक जलाया जाता है. ऐसा करने से मनचाहा फल मिलता है. चमोली के लोगों का मानना है कि नाग देवता के पूजन से जीवन की सभी समस्याओं का समाधान होता है. इनकी पूजा करने से कुंडली के कालसर्प दोष दूर होता है. इसके साथ ही जीवन में आ रही समस्याओं से मुक्ति मिलती है.
धार्मिक स्थल
चमोली के बांण गांव में नाग देवता का एक रहस्यमयी एवं अद्भुत मंदिर है. माना जाता है कि यहां नागराज विराजमान हैं और अपनी मणि की खुद रक्षा करते हैं. नागमणि की रक्षा करते हुए नागराज निरंतर फुककार से विष छोड़ते रहते हैं, जिसके कारण लोग करीब 80 फीट की दूरी से इनकी पूजा करते हैं. इन मंदिर का निर्माण मां पार्वती के चचेरे भाई लाटू के नाम पर कराया गया है.
लोगों का कहना है कि मणि की तेज रोशनी इंसान को अंधा बना देती है. इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि पुजारी नाक मुंह पर पट्टी बांधकर पूजा करने के लिए जाते हैं. न तो पुजारी के मुंह की गंध देवता तक और न ही नागराज की विषैली गंध पुजारी के नाक तक पहुंचनी चाहिए. वहीं मंदिर का कपाट वर्ष में केवल एक बार वैशाख पूर्णिमा पर खोला जाता है. इस दिन यहां विशाल मेला का आयोजन किया जाता है. नाग देवता का यह मंदिर समुद्र तल से कुल 8500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है.
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