कौन होते हैं शंकराचार्य, सनातन धर्म में क्या हैं इनकी अहमियत? जानिए

Raginee Rai
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

Shankaracharya: राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा को लेकर देशभर में तैयारियां काफी जोरो-शोरों से चल रही हैं. इस समय देशभर में राम नाम की धूम है. वहीं, प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होने के लिए देश के वरिष्ठ गणमान्यों और साधु-संतों को मंदिर ट्रस्ट निमंत्रण भी भेज रहा है. इसी बीच, शंकराचार्यों का नाम भी काफी सुर्खियों में है. ऐसे में बहुत से लोगों के मन में सवाल उठ रहा होगा कि आखिर ये शंकराचार्य कौन हैं. उनका क्या अहमियत है. आज इस आर्टिकल में हम जानेगें शंकराचार्य कौन होते हैं और सनातन धर्म में इनकी कितनी अहमियत होती है.

कौन होते हैं शंकराचार्य?

सनातन धर्म में शंकराचार्य को पद सबसे ऊंचा माना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आदि शंकराचार्य ने भारत में शंकराचार्य पद की स्‍थापना की थी. उन्‍होंने ही मठों की शुरुआत की थी. आदि शंकराचार्य अद्वैत वेदांत के प्रणेता, संस्कृत के विद्वान, उपनिषद व्याख्याता और हिंदू दार्शनिक और धर्मगुरु थे. धार्मिक मान्‍यताओं के अनुसार, उन्‍हें भगवान शंकर का अवतार भी माना गया. आदि शंकराचार्य को जगदगुरु के नाम से भी जाना जाता है, जो सनातन धर्म की रक्षा और प्रसार करना चाहते थे. सनातन धर्म के लिए उन्होंने अपने प्रमुख चार शिष्यों को देश के चार दिशाओं में स्थापित किए गए मठों की जिम्मेदारी दी. इन मठों के प्रमुख को शंकराचार्य कहा जाता है. सनातन धर्म में इस को सर्वोच्च माना जाता है.

मठ/पीठ क्या है?

मठ या में गुरु अपने शिष्यों को हिन्‍दु धर्म की आध्‍यात्मिक शिक्षा और ज्ञान देते हैं. हालांकि, इसके साथ ही, मठों में जीवन के कुछ महत्‍वपूर्ण पहलू, सामाजिक सेवा, साहित्य आदि का भी ज्ञान दिया जाता है. मठ का बहुधार्मिक अर्थ हैं. भारत में चार प्रमुख मठ द्वारका, ज्योतिष, गोवर्धन और शृंगेरी पीठ है. संस्कृत में मठों को ही पीठ कहते हैं.

कैसे होता है शंकराचार्य का चयन?

शंकराचार्य के पद पर जो बैठता है उन्‍हें त्यागी, दंडी संन्यासी, संस्कृत, चतुर्वेद, वेदांत ब्राह्मण, ब्रह्मचारी और पुराणों का ज्ञान होना बहुत जरूरी है. साथ ही, उन्हें अपने गृहस्थ जीवन, मुंडन, पिंडदान और रूद्राक्ष धारण करना काफी महत्‍वपूर्ण माना जाता है. शंकराचार्य के लिए ब्राह्मण होना अनिवार्य है, जिन्हें चारों वेद और छह वेदांगों का ज्ञाता होना चाहिए.

शंकराचार्य बनने के लिए उन्हें अखाड़ों के प्रमुखों, आचार्य महामंडलेश्वरों, प्रतिष्ठित संतों की सभा की सहमति और काशी विद्वत परिषद की स्वीकृति की मुहर चाहिए होती है. इसके बाद ही शंकराचार्य की पदवी प्राप्‍त होती है.

देश के प्रमुख शंकराचार्य कौन और किस मठ पर हैं?

गोवर्धन मठ

ओडिशा के पुरी में गोवर्धन मठ है. गोवर्धन मठ के संन्यासियों के नाम के बाद ‘अरण्य’ सम्प्रदाय नाम लगता है. इस समय निश्चलानंद सरस्वती इस मठ के शंकराचार्य हैं. इस पीठ के अन्तर्गत ‘ऋग्वेद’ को रखा गया है. आदि शंकराचार्य के प्रथम शिष्य पद्मपाद आचार्य गोवर्धन मठ के पहले मठाधीश थे.

गुजरात के द्वारकाधाम में शारदा मठ स्‍थापित है. शारदा मठ के शंकराचार्य सदानंद सरस्वती हैं. इस मठ के संन्यासियों के नाम के बाद तीर्थ या आश्रम लगता है.  इस पीठ के अंतर्गत ‘सामवेद’ को रखा गया है. इस पीठ के पहले मठाधीश हस्तामलक (पृथ्वीधर) थे.

ज्योतिर्मठ

उत्तराखंड के बद्रिकाश्रम में ज्योर्तिमठ स्‍थापित है. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ज्‍योर्तिमठ के शंकराचार्य हैं. इस मठ के संन्यासियों के नाम के पीछे सागर का प्रयोग किया जाता है. ज्योतिर्मठ के अंतर्गत अथर्ववेद को रखा गया है. ज्‍योर्तिमठ के पहले मठाधीश त्रोटकाचार्य थे.

शृंगेरी मठ

दक्षिण भारत के रामेश्वरम में शृंगेरी मठ स्थित है. इस मठ के संन्यासियों के नाम के बाद सरस्वती या भारती लगाया जाता है. जगद्गुरु भारती तीर्थ शृंगेरी मठ के शंकराचार्य हैं. यजुर्वेद को इस मठ के अंतर्गत रखा गया है. शृंगेरी मठ के पहले मठाधीश आचार्य सुरेश्वराचार्य थे.

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