नासा और इसरो ने मिलकर खोला ब्लैक होल का रहस्य, तारों के मलबे के चक्र से टकरा रही चीजें

Aarti Kushwaha
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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हमारा ब्राह्माण ढेर सारे रहस्‍यों से भरा हुआ है. वहीं, खगोलविदों अक्‍सर नई नई जानकारि‍यों को उजागर करते रहते है. ऐसे में अब उन्‍होंने एक ऐसी अनोखी खगोलीय घटना का पता लगाया है. जिसमें एक विशाल ब्लैक होल दो खगोलीय पिंडों को बाधित कर रहा है, इन पिंडों में से एक तारा है.

यह खोज अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के विभिन्न अनुसंधान केंद्रों, एनआईसीईआर और हबल ने भारतीय अंतरिक्ष आधारित खगोल विज्ञान उपग्रह के सहयोग से की है. इसमें बड़े ब्लैक होल के चारों ओर तारों के मलबे के व्यवहार के बारे में नई जानकारी मिली है.

ब्लैक होल के करीब से गुजरा तारा

दरअसल, साल 2019 में खगोलविदों ने एक तारे को विशाल ब्लैक होल के बहुत करीब जाते हुए देखा था. हालांकि यह तारा गुरुत्वाकर्षण बल के वजह से नष्ट हो गया था. इस घटना को ज्वारीय विच्छेदन घटना (टीडीई) कहा जाता है. खगोलविदों के मुताबिक, इस तारे के टूटने के बाद उसके अवशेषों ने एक चक्र बनाया, जिसे ‘अधिग्रहण चक्र’ कहा जाता है, जो ब्लैक होल के चारों ओर घूमता है और उसमें तारे के टुकड़े होते हैं.

एक्स-रे का विस्‍फोट

उनका कहना है कि यह चक्र कई वर्षों तक स्थिर रहा, लेकिन हाल ही में उन्‍होंने देखा कि इसका आकार बड़ा हो गया है और यह एक दूसरी वस्तु से टकराने लगा है. ऐसे में उनका अनुमान है कि यह दूसरी वस्तु एक तारा या एक छोटा ब्लैक होल हो सकता है, जो पहले कक्षा में सुरक्षित दूरी पर था और अब यह दूसरी वस्तु हर 48 घंटे में तारों के मलबे के चक्र से टकरा रही है. हालांकि जब इन दोनों में टक्कर होती है, तो हर बार एक्स-रे का तेज विस्फोट होता है.

उन्‍होंने बताया कि जैसे एक तैराक बार-बार पानी में कूदता है और हर बार पानी के छींटे पड़ते हैं. वैसे ही यहां तारा तैराक की तरह है और चक्र पानी की तरह है, जो गैस व एक्स-रे का एक प्रकार का छींटा बनाता है.

आकाशगंगाओं के केंद्र से निकलने वाली तेज एक्स-रे

खगोलविदों ने ज्वारीय विच्छेदन घटनाओं का लंबे समय तक अध्ययन किया है, जिनमें एक तारा एक ब्लैक होल के कारण जोरदार विस्फोट में नष्ट होता है. लेकिन हाल ही में एक नई घटना देखी गई है, जिसे अर्ध-नियमित विस्फोट (क्यूपीईएस) कहते हैं. ये विस्फोट आकाशगंगाओं के केंद्र से निकलने वाली तेज एक्स-रे की चमक हैं, जो समय-समय पर होती हैं. पहले इन विस्फोटों को सही तरीके से समझा नहीं गया था.

वहीं, एक अन्‍य खगोलविद ने कहा कि इस प्रकार की घटनाओं के बीच संबंधन को लेकर बहुत अटकलें थीं. लेकिन अब हमने इसका सबूत खोज निकाला है. उन्होंने कहा कि  यह दो खगोलीय रहस्यों को एक साथ सुलझाने जैसा है. इस घटना को अब एटी2019 किज नाम दिया गया है. ऐसे में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर नासा के एनआईसीईआर उपकरण ने एटी2019 किज की निगरानी की और पुष्टि की कि एक्स-रे विस्फोट हर 48 घंटे में होते हैं.

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