Toxic Environment: आज के समय में पूरी दुनिया नए नए खोज करने में जुटी हुई है. जो एक तरफ हमारे कामों को आसान बना रही है तो वहीं, दूसरी ओर हमारे जीवन के लिए खतरा भी उत्पन्न कर रही है. दरअसल दुनिया में किए जा रहे शोधों से जलवायु को काफी नुकसान हो रहा है, जिससे धरती पर रहने वाले जीव-जंतुओं, वनस्पतियों समेत इंसानों की सेहत और हमारे ग्रह की सुरक्षा को खतरा बढ़ रहा है.
वहीं, वैज्ञानिकों का कहना है कि हमने धरती की सुरक्षा की 7 सीमाएं पार कर ली हैं. फिलहाल हम जलवायु की 8 सुरक्षित सीमाओं में से आखिरी में रह रहे हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार, धरती पर कुल आठ सुरक्षा की प्राकृतिक परत होती है. ये परत ही धरती पर रहने वाले सभी जीवों और वनस्पतियों को सुरक्षा प्रदान करने के साथ ही उन्हें स्वस्थ भी रखती हैं.
Toxic Environment: वैज्ञानिकों ने जताई चिंता
एक अध्ययन के बाद करीब 40 से अधिक वैज्ञानिको का कहना है कि अब हमारा ग्रह इंसानों के रहने लायक नहीं रह गया है. इंसान ने धरती को सुरक्षित रखने वाली हर सीमा को पार कर दिया है. ऐसे में उन्होंने मौजूदा हालात को लेकर चिंता भी जताई है.
धरती की सुरक्षा सीमाओं में क्या-क्या है?
शोधकर्ताओं का कहना है कि हमें प्रकृति से मिली सभी चीजें प्रदूषित हो चुकी हैं. धीरे-धीरे इंसान का जीना मुश्किल हो रहा है. धरती और हमारी सुरक्षा सीमाओं में जैव विविधता,जलवायु, मीठा पानी, हवा और मिट्टी शामिल हैं. इन सभी में जहर का स्तर बहुत तेजी से बढ़ रहा है. यहीं वजह है कि धरती का पर्यावरण खतरे में पड़ गया है, जिसका प्रभाव इंसानी जीवन पर भी पड़ रहा है. इसके साथ ही वैज्ञानिकों ने शोध में पाया कि धरती पर जीवन की सुरक्षा के कंपोनेंट काफी खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका हैं.
हालात की कल्पना करना भी मुश्किल…
वैज्ञानिकों का मानना है कि धरती और यहां रहने वाली हर जीवित प्रजाति को सुरक्षा मुहैया कराने वाले कंपोनेंट ही यदि खतरे में पड़ जाएंगे तो इसकी कल्पना करना मुश्किल नहीं है कि हमारा व हमारे ग्रह का क्या होगा. वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु ने 1-सी की सीमा पार कर दी है. जबकि लाखों लोग पहले से ही बदलती जलवायु की चपेट में आ चुके हैं.
लक्ष्यों को पूरा करने में सक्षम नहीं
वहीं, संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश 2015 से वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने पर सहमत हुए हैं. जबकि दुनिया की 30 फीसदी भूमि, समुद्र और मीठे पानी के क्षेत्रों में जैव विविधता की रक्षा करने पर भी सहमति बनी है. इसके अलावा, पृथ्वी आयोग के वैज्ञानिकों का कहना है कि मौजूदा हालात में हम अपने तय लक्ष्यों को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं. उन्होंने कहा कि धरती पर हर बदलाव को व्यवस्थित करने का समय आ चुका है. हम संतुलन बनाकर खतरे को कुछ समय के लिए टाल सकते हैं.
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