Unique Wedding Tradition: यहां गाड़ी, बंगला, कैश नहीं, सांप दिखाकर होती है शादी, जानिए रिवाज

Shubham Tiwari
Sub Editor The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

Bizarre Wedding Tradition: हर मां-बाप और भाई का सपना होता है कि उसकी बहन बेटी की अच्छी घर में शादी हो. इसके लिए दिन रात मेहनत करके पैसे जुटाते हैं. इन पैसों से लोग अपनी बेटी को दहेज देने के लिए महंगे महंगे तोहफे खरीदते हैं. शादी विवाह में हर क्षेत्र, समुदाय की अपनी अपनी अलग परंपरा है. लेकिन आज हम एक ऐसी परंपरा के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे सुनकर आपकी भी रुह कांप जाएगी.

ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि, आज हम जिस समुदाय की बात कर रहे हैं, वे अपने बेटी को दहेज में महंगे तोहफे जैसे बंगला, गाड़ी, कैश या कोई कीमती वस्तु नहीं देते, बल्कि वे दहेज में एक से एक जहरीले सांप देते हैं.

दरअसल, हम जिस समुदाय की बात कर रहें हैं, वो छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य जिले कवर्धा में पाई जाती है. यहां संवरा आदिवासी समाज के लोग अपने बेटी की शादी में जहरीले सांप देते हैं. इस समाज की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है जो आज भी कायम है. यदि लड़के वाले दहेज में सांप लेने से मना करते हैं तो लड़की वाले शादी नहीं करते हैं. बेटी की शादी के लिए ये लोग सांपों को इकठ्ठा करते हैं. इस समुदाय की परंपरा के मुताबिक, बेटी की शादी में कम से कम 9 जहरीले सांप देना जरुरी होता है.

दहेज में क्यों देते हैं सांप?

कवर्धा जिले के नगर पंचायत बोड़ला के अंतिम छोर में संवरा परिवार की बस्ती है. यहां इस समाज के 20 से अधिक फैमिली रहती है. इस फैमिली के लोगों के इनकम का स्रोत यानी रोजी रोटी का मुख्य जरिया सांप दिखाना ही है. जिसे गांव-गांव दिखाकर ये चावल और थोड़े पैसे इकट्ठा करते हैं. कुछ लोग करतब दिखाकर अपनी रोजी रोटी की व्यवस्था करते हैं. इस समुदाय के लोग अपने बेटी को सांप इसलिए देते हैं ताकि ससुराल में बेटी के भोजन की व्यवस्था सांप दिखाकर किया जा सके.

सांप दिखाना धंधा

ज्ञात हो कि संवरा समाज के लोग आदिवास समाज में ही आते हैं. इनके रिश्तेदार भी वनांचल क्षेत्र में रहते हैं. ये लोग मैदानी क्षेत्र में जाकर सांप से जुड़े काम करते हैं. इनके आय का मुख्य जरिया सांप दिखाना है. हालांकि, शासन की ओर से इन्हें राशन कार्ड की सुविधा मिली है, जिससे ये चावल लेकर अपनी अजीवीका चलाते हैं. इस समुदाय की तरफ से सरकार से आवास की मांग भी की जाती है. किंतु स्थायी जगह नहीं होने के चलते लाभ नहीं मिल पा रहा है. इसके कारण ये झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं.

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