Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्रीकृष्ण बिरह-व्यथित पांडवों का परीक्षित को राज्य देकर स्वर्ग सिधारना। भागवत में प्रसंग आया है कि- जब अर्जुन द्वारिका से लौट कर आये और आकर सुनाया की मैं वही अर्जुन और मेरा वही गाण्डीव धनुष, वही मेरा रथ लेकिन रास्ते में भीलों ने डंडे से पीटा और मैं अपने धनुष में कृष्ण के चले जाने के बाद डोर नहीं बांध पाया।
अब मुझे पता चला कि मेरे जीवन में जो कुछ हुआ, उसके मूल में मेरे कन्हैया आए। जो कुछ हुआ इस शरीर से मुझे निमित्त बनाकर कराया, आज मैं अपने आपको शून्य देख रहा हूं। बुआ कुंती के कानों में आवाज पड़ी, क्या हुआ पार्थ लिपट गये चरणों में, माँ प्रभु ने अपनी लीला समाप्त कर दी, हम बिना प्राण के शरीर हो गये, सर्वस्व अंधकारमय हो गया।
कुंती ने कहा बस, तैयारी कर लो, मैं जा रही हूं पीछे कृष्ण के, अब आप लोग भी तैयारी कर लो, क्या करोगे संसार में रहकर? कृष्ण! कृष्ण कहते हुए कुंती ने शरीर छोड़ दिया और परम पद प्राप्त कर लिया। बैठे-बैठे ही शरीर छोड़ दिया। भगवान में कितना प्रेम है। भगवान के स्नेह का जीता जागता नमूना, कुंती ने सुना और शरीर छोड़ दिया।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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