Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, आसक्ति के कारण हम आप अपना कर्म ठीक से नहीं कर पाते हैं, क्योंकि जहां आसक्ति आई की आग्रह आया, आग्रह आया की टेंशन आया और टेंशन आया कि गलती हुई, गलती हुई की क्रोध आया, क्रोध आया कि फिर से गलती हुई और इस प्रकार हम आप नुकसान में ही रहते हैं। इसलिए भजन सत्संग आदि साधन से आसक्ति का मिटना प्रथम अनिवार्य है।
धर्म शास्त्रों में वर्णन आता है कि- प्रकृति के गुणों से वशीभूत होकर जीव कर्म करने के लिये मजबूर है। जब तक शरीर है, कर्म होते ही रहते हैं। कर्म से बचना सम्भव नहीं है किन्तु कर्म के बंधन से बचने का उपाय है। कर्म बंधन से बचने के लिए क्या करें? तो उत्तर आया, वेदों ने जो बताया वह करना चाहिये। शास्त्र विहित कर्म, यज्ञ कर्म, अपने कर्म से भगवान की पूजा करो।
यज्ञ कर्म के लिये तीन बातें आवश्यक है:
(1) पहली बात- भगवान् के निमित्त कर्म होना चाहिये। जो भी कर्म करो, भगवान के निमित्त करो।
(2) दूसरी बात– फल की आसक्ति को छोड़कर काम करो, क्योंकि आसक्ति से नुकसान ही है।
(3) तीसरी बात- जितना हो सके, उतना बढ़िया से बढ़िया काम करके दिखाओ। श्रेष्ठतम कर्म करके दिखाओ। फूल माला बनायें तो बढ़ियां से बढ़ियां बनायें, भगवान् का श्रृंगार बढ़ियां हो, भोग सामग्री बढ़ियां से बढ़ियां तैयार करें। तब वह कर्म यज्ञ का रूप ले लेता है।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).