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The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, हम लोग बड़े भाग्यशाली हैं, हम सबका जन्म पवित्र धरा पर हुआ। ऋषि मुनियों की तपस्थली भगवान श्रीराम, भगवान श्रीकृष्ण की प्राकट्य भूमि, पवित्र भारतवर्ष में हम सबका जन्म हुआ है। हम सबका भगवान की कृपा से पवित्र भारत वर्ष में जन्म हुआ है। श्रीमद्भागवत महापुराण के पंचम स्कन्ध में देवताओं को भारतवासियों की स्तुति करते दिखाया गया है।
अहो अमीषां किम शोभनं अकारि।
भारत की पावन धरा पर जन्म लेने वालों ने कौन ऐसे पुण्य किया था, जिससे उन्हें इस पावन भूमि पर जन्म प्राप्त हुआ। देवता विचार करके इस निर्णय पर पहुंचते हैं कि यहां जन्म किसी पुण्य का फल नहीं है। पुण्य का फल हम देवता स्वर्ग में भोग रहे हैं। यह भगवत कृपा का फल है।
प्रसन्न येषांस्विदतस्वयं हरिः।
निश्चित ही भगवान ने प्रसन्न होकर भारत की धरती पर जन्म दिया है।
यैर्जन्मलब्धं नृषु भारताजिरे।
प्रश्न होता है कि देवता लोग भागवत में भारत के लिए क्यों कह रहे हैं? कह देते ओ भाग्यशाली हैं जिन्होंने अमेरिका या यूरोप की धरती पर जन्म लिया। भारत में ऐसी कौन सी विशेषता है? देवता कहते हैं – भारत में जन्म लेने से सत्संग अत्यन्त सरलता से उपलब्ध हो जाता है। भगवान की भक्ति करने का अवसर सहजतापूर्वक प्राप्त हो जाता है। हम देवता भगवान की भक्ति के लिए तरसते रहते हैं।
मुकुन्दसेवौपयिकं स्पृहा हि नः।
हम देवता स्पृहा करते रहते हैं। भगवान की हमें सेवा प्राप्त हो, भगवान की भक्ति प्राप्त हो। भगवान के कथा कीर्तन का अवसर हमें प्राप्त हो। हम देवता स्वर्ग में तड़पते रह जाते हैं, हमें उपलब्ध नहीं होता है। भारतवर्ष में तो जन्म लेने के पहले से भक्ति शुरू हो जाती है। माता कथा सुन रही है, बालक की भी श्रवण भक्ति बन गई। माता ने प्रसाद लिया, चरणामृत लिया तो बालक को भी प्राप्त हो गया।
गर्भवती माता ने मंदिर की परिक्रमा की, बालक की परिक्रमा अपने आप हो गई। ये भक्ति तो है।अभी छोटे-छोटे बालक कुछ नहीं जानते, माँ ने मंदिर की देहरी पर धर दिया, संतों के चरणों में रख दिया, मुख में एक बूँद चरणामृत डाल दिया, हो गई भक्ति।भागवत के इसी आशय को पूज्य गोस्वामी श्रीतुलसीदासजी महराज ने मानस में आदर दिया है।
कबहुँक करि करुना नर देही।
देत ईश बिनु हेतु स्नेही ।।
साधन धाम मोक्ष कर द्वारा ।
पाइ न जेहिं परलोक सँवारा ।।
सो परत्र दुःख पावइ सिर धुनि धुनि पछिताइ।
कालहि कर्महि ईश्वरहि मिथ्या दोष लगाइ।।
साधु लोग कैसे करुणावान हैं- जो आलसी हैं, पड़े रहते हैं, उनके लिए भी करुणा कृपा करके नगर के भक्तों को प्रेरणा कर दी, प्रभात फेरी करना, उनके कानों में भी भगवान के नाम पड़ जाते हैं।जो लोग मंदिर नहीं जाते, घर और अपने कामकाज में बहुत आसक्त हैं। उनके ऊपर करुणा कृपा करके शोभायात्रा निकाल दिया, भगवान का दर्शन, संतों का दर्शन सबको करा दिया।
इतना पवित्र देश कौन होगा? जहां पर घर बैठे-बैठे ठाकुर जी दर्शन देने आ जायें. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).