इन्द्रियों को भोग देकर नहीं किया जा सकता तृप्त: दिव्य मोरारी बापू 

Shivam
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Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, संसार में बिखरे मन को समेट कर भगवान् के साथ जुड़ने की पद्धति। अपने जीवन के व्यापार को समेटना है। एक व्यक्ति पंजाब की गतिविधियों से आतंकित हुआ, अपनी फैक्ट्रियां, अपनी दुकान, अपने मकान को समेट कर हरियाणा में काम शुरू करना चाहता है और धीरे-धीरे सब कुछ समेट रहा है। इसी तरह हम-आपको भी संसार का व्यापार समेट कर भगवान के साथ जुड़ना है, इसीलिए जीवन के व्यापार को समेटना है। जीवन के व्यापार को समेटने की पद्धति धृतराष्ट्र के मोक्ष प्रसंग में आयी है।
भागवत में लिखा हुआ है कि- सबसे पहले वाणी को मन में हवन करो- अर्थात् मौन हो जाओ। यह वाणी का मन में हवन है। विषयों से इन्द्रियों को मोड़कर, इनको प्राणों में हवन करो। मन को ले जाकर बुद्धि में हवन करो और बुद्धि को ले जाकर माया में, माया शक्ति को प्रकृति में और प्रकृति को ले जाकर ब्रह्म में हवन करो। जैसे मकड़ी जाला बुनती है और फिर वह उल्टी होकर निगल जाती है। इसी तरह मूल ईश्वर है, जीव भी ईश्वर का अंश है। ईश्वर से यह बाहर आया और बाहर आकर फैलते-फैलते इसने अपना काफी विस्तार कर लिया और इसमें मकड़ी के जाल जैसा फंस गया। अब जैसे वहां से चला था, ठीक वैसे वापिस लौटना है, उनसे वापिस मुड़ना है।
धृतराष्ट्र ने वैसा ही किया। उन्होंने मौन ले लिया, मन में चले गये, मन को बुद्धि में ले गये, बुद्धि को माया में जाकर लीन कर दिया और माया शक्ति को ब्रह्म में लीन कर दिया। जगत के व्यापार से पहले इन्द्रियों को विषयों से मोड़ा। सामान्य व्यक्ति की इंद्रियां बाहर की ओर देख रही हैं। आँख चाहती है कि सुन्दरता देखने को मिले, कान चाहते हैं कि सुन्दर शब्द सुनने को मिले। जिह्वा चाहती है कि- बढ़ियां स्वाद चखने को मिले,  नाक चाहती है कि सुगन्धि प्राप्त हो। चमड़ी चाहती है कि- कोई सुंदर सुकोमल स्पर्श करने को मिले। ये इन्द्रियों के भोजन हैं। इंद्रियों में इतनी भूख है, इनकी प्रज्वलित आग है कि सारे संसार के भोग एक व्यक्ति को दे दिये जायें, फिर भी इन्द्रियों से पूछा जाये तृप्ति हो गई तो वे कह देंगी – न अलंम् न आलम्, अभी नहीं, अभी नहीं।
आज विश्व में चार अरब लोग हैं। यदि सारे विश्व के सुख-भोग एक व्यक्ति की इंद्रियों को तृप्ति नहीं दे  सकते तो क्या चार अरब व्यक्ति तृप्त हो सकेंगे, कल्पना करो। इन्द्रियों को भोग देकर तृप्त नहीं किया जा सकता। शास्त्र में दो बातें कही हैं, इंद्रियों की भूख कब मिटेगी? या तो संसार भर के भोग उसे मिल जायें, जो-जो मन या इंद्रियां चाहती हैं वह मिल जाये, तब भूख मिटेगी, तब तृप्त किया जाये या इन्हें विषय न दिये जायें  तो यह शांत हो जायें। जो आप चाहते हो मिल जाये तो सुख, न मिले तो दुःख और मन में  चाह ही उत्पन्न न हो तो शांति मिलती है। भजन साधन से मन अचाह हो जाता है।
चाह गई चिंता गई, मनवा वे परवाह।जिसको कछू न चाहिए, सो ही शाहम् शाह।। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).

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