Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्री कृष्ण के सखा सुदामा, बड़े त्यागी-तपस्वी थे। अपने नित्य धर्म में लगे रहते थे। वेद का पठन, पाठन, यही इनका परम धर्म था। भगवान की इच्छा से कोई वस्तु मिल जाए, कोई दे जाए, तो उसी से काम चला लेते थे। किसी से कुछ मांगते नहीं थे। विद्यार्थियों को पढ़ाते थे, लेकिन फीस नहीं लेते थे, कुछ नहीं लेते थे।
वास्तव में व्यक्ति का त्याग ही उसके सम्मान का कारण होता है। ब्राह्मण- सुदामा, चाणक्य, परशुराम जैसे महापुरुषों के नाम तो लेते हैं कि हम उनके वंशज हैं। वही सम्मान चाहते हैं लेकिन वह सम्मान कब मिलेगा, जब उनके जैसे तुम्हारे अंदर त्याग आयेगा।
पत्नी का आग्रह- सुदामा जी ने कहा मैं मांगने नहीं जाऊंगा। आप मांगना मत, आप चले जाओ।
वे सर्वज्ञ हैं, उन्हें सब पता है। सुदामा जी जाने को तैयार हुए। इस भाव से कि पत्नी बार-बार कह रही है नहीं जाऊंगा, तो इसको बुरा लगेगा। बहुत दिन हो गया इसी बहाने श्री कृष्ण का दर्शन भी हो जायेगा।जैसे गोपियों का दही बेचना एक बहाना था, प्रधानता कृष्ण दर्शन का ही रहा। इसी प्रकार सुदामा जी कृष्ण दर्शन करने जा रहे हैं, पत्नी के कहने पर जा रहे हैं, यह तो एक बहाना है। किसी बहाने शुभ कार्य और भक्ति हो तो अच्छा है।
सभी हरि भक्तों को तीर्थगुरु पुष्कर आश्रम एवं साक्षात् गोलोकधाम गोवर्धन आश्रम के साधु-संतों की तरफ से शुभ मंगल कामना। श्रीदिव्य घनश्याम धाम
श्रीगोवर्धन धाम कॉलोनी बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्रीदिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट, ग्रा.पो.-गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).