Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्।
जो कार्य अपने लिए अनुकूल न हो, वैसा व्यवहार दूसरों के साथ मत करो। धर्म की इस परिभाषा के भीतर, सारी मानवता आ गई। अगर हर कोई धर्म की इस मर्यादा में चले, तो परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व की समस्त समस्याओं का समाधान हो सकता है।
झूठा व्यवहार करने वाला भी चाहता है कि- लोग हमसे सच्चा व्यवहार करें, तो हमें भी सच्चा व्यवहार करना चाहिए यही धर्म है। हमारी वास्तु छल से ले तो हम दुःखी होते हैं, हम दूसरों से छल न करें, यही धर्म है। हमारे साथ कोई निर्दयता का व्यवहार करे, तो हमें पीड़ा होती है, हम भी दूसरों के साथ निर्दयता का व्यवहार न करें यही धर्म है।
चार वेद छः शास्त्र में बात मिली है दोय।
दुःख दीन्हें दुःख होत है सुख दीन्हें सुख होय।।
धर्म क्या है, अधर्म क्या है?
परहित सरिस धरम नहिं भाई।
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।।
सभी हरि भक्तों को तीर्थगुरु पुष्कर आश्रम एवं साक्षात् गोलोकधाम गोवर्धन आश्रम के साधु-संतों की तरफ से शुभ मंगल कामना। श्रीदिव्य घनश्याम धाम
श्रीगोवर्धन धाम कॉलोनी बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्रीदिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट, ग्रा.पो.-गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).