भगवती सती ने दक्ष के यज्ञ में शरीर का किया त्याग: दिव्य मोरारी बापू

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthanपरम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, प्रश्न-भगवान की कथा सुनने का क्या फल है? उत्तर- भगवान की कथा श्रवण करने के अनंत फल है। उसमें से संतों का एक भाव श्रद्धा से हृदयंगम करना चाहिए। भगवान की कथा बिना श्रवण किए, भगवान सामने हों तो भी हम नहीं पहचान पायेंगे। उदाहरण- भगवती सती भगवान शंकर के साथ कथा श्रवण करने अगस्त ऋषि के आश्रम पर गईं, ध्यान से कथा श्रवण नहीं किया। वापस आते समय भगवान श्री राम का प्रत्यक्ष दर्शन हुआ, लेकिन नहीं पहचान पायीं। भगवान शिव के समझाने से भी नहीं समझ में आया, अंत में तो भगवान श्री राम जी की परीक्षा लेने गईं। भगवान शिव के पूछने पर की कैसे परीक्षा लिया? मना कर दिया कि हमने परीक्षा लिया ही नहीं। अंतर्यामी शिव सब जान गये।
भगवती सती ने दक्ष के यज्ञ में शरीर का त्याग किया, पुनः महाराज हिमाचल के यहां अवतार हुआ। भगवान शंकर के साथ उनका विवाह हुआ। फिर भी माता पार्वती भगवान शिव से कहती हैं कि अभी भी भगवान श्री राम के प्रति भ्रम बना हुआ है। परमात्मा की पहचान कब हुई? भ्रम कब मिटा? जब उन्होंने भगवान शंकर से कथा श्रवण किया। बहुत सीधी सी बात है, जिस विषय में हमने सुना ही नहीं है तो हम क्या समझेंगे, कुछ भी नहीं समझ सकते। कथा श्रवण से भगवान को पहचाना जा सकता है, चाहे वो जिस रूप में हों, इसका उदाहरण श्रीहनुमानजी महाराज हैं।
श्रीरामचरितमानस के किष्किंधा कांड में श्रीहनुमानजी भगवान से पूछते हैं, आप कौन हैं? भगवान श्री राम अपना परिचय अयोध्या नरेश महाराजाधिराज श्रीदशरथजी के पुत्र के रूप में देते हैं। लेकिन श्री हनुमान जी महाराज तुरंत पहचान गये, यह कोई दूसरे नहीं, यह साक्षात् परमात्मा ही है।
प्रभु पहचानि परेउ गहि चरना।
सो सुख उमा जाइ नहिं बरना।।
सभी हरि भक्तों को तीर्थगुरु पुष्कर आश्रम एवं साक्षात् गोलोकधाम गोवर्धन आश्रम के साधु-संतों की तरफ से शुभ मंगल कामना।श्रीदिव्य घनश्याम धाम श्रीगोवर्धन धाम कॉलोनी बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्रीदिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट, ग्रा.पो.-गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).

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