Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, परमात्मा आनंद के केंद्र है, सच्चिदानंद- भगवान् कृष्ण सत् – जो तीनों काल में सदा रहता है उसे सत कहते हैं। चित- जो चेतन होता है उसे चित् कहते हैं और तीसरा विशेषण है आनंद – परमात्मा आनंद का केंद्र है। जैसे – जल का केंद्र समुद्र है और प्रकाश का केंद्र सूर्य है, इसी तरह आनंद के केंद्र परमात्मा है। संसार को, प्रकृति को, परमात्मा ने आनंद का एक बिंदु प्रदान किया है। परमात्मा सिंधु रूप है, हम बिंदु में पागल हो रहे हैं। कदाचित् सिंधु प्राप्त हो जाए तो फिर हमारे आनंद की सीमा क्या होगी? विचार कीजिए! इस जगत की उत्पत्ति, पालन तथा संहार परमात्मा के द्वारा होता है।
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में तीन तप होते हैं- दैहिक, दैविक और भौतिक। जो श्री कृष्ण के चरणों में समर्पित हो जाते हैं उनके जीवन के ये तीनों ताप समाप्त हो जाते हैं। ऐसे सच्चिदानंद स्वरुप भगवान् श्री कृष्ण को हम सब नमस्कार करते हैं। कौशिकी संहिता के आधार पर अमरनाथ में भगवान शंकर ने पार्वती अंबा को अमर कथा सुनाई थी। श्रीमद्भागवत की कथा ही वो अमर कथा है। जब भगवान शंकर अंबा पार्वती को अमर कथा सुन रहे थे राधारानी के मन पिंजर में कलवाक नाम के तोते के रूप में रहने वाले शुकदेव भगवान को भगवान कृष्ण ने एक विकलित अंडे के रूप में अमरनाथ भेजा।
पार्वती अंबा कथा सुनाने लगी। भगवान शंकर समाधि भाषा में नेत्र बंद कर कथा सुना रहे थे। भगवान भागवत की कथा अमृत है। परमात्मा की कथा और नाम भी अमृत है। जिसको पी लेगा- न स गर्भगता भूयाः। वो दोबारा फिर जन्म नहीं लेगा। जन्म-जन्मान्तर, युग-युगांतर, कल्प-कल्पांतर के पाप श्रीमद्भागवत के श्रवण मात्र से समाप्त हो जाते हैं। वो व्यक्ति दोबारा फिर मां के गर्भ में नहीं आता ये भागवत की घोषणा है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).