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Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, मानस सरोवर का कर्मघाट- श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर का दूसरा घाट कर्म का है। इस संसार में कुछ लोग ऐसे हैं, जिन्हें कर्म अत्यन्त प्रिय हैं। मनुष्य को अपने जीवन में सत्कर्म करना चाहिए। जीवन उत्तम सदाचारी हो तो हर समय पूजा पाठ करने की बहुत अधिक आवश्यकता ही नहीं है।
जीवन में सद्गुणों की आराधना होनी चाहिए। यह भी सम्भव है कि सच्चा कर्मयोगी सज्जन होते हुए भी बहुत भक्ति न कर पाता हो, सत्कर्म करने वाले का कल्याण थोड़ी भक्ति से भी हो जाता है। उसका जीवन प्रामाणिक होता है और वह अपने सामने कुछ आदर्श रखकर चलता है। मनुष्य को अपने जीवन में सत्य, अहिंसा, अभय, सत्वशुद्धि, ज्ञानयोग, व्यवस्थिति आदि समस्त दिव्य गुणों की उपासना करनी चाहिए। हमारा जीवन स्वच्छ, शुद्ध और आदर्श हो।
और ऐसा कर्मयोगी यदि स्वतःभक्ति बहुत अधिक नहीं भी करे तब भी वह किसी अन्य भक्त की आलोचना नहीं करता।संसार में कर्मयोग के अनेक आदर्श हैं किंतु महर्षि याज्ञवल्क्य के समान दूसरा आदर्श दुर्लभ है। वे एकमात्र ऐसे महर्षि हैं, जिन्होंने अपने समक्ष एक सम्पूर्ण वेद प्रस्थापित किया। उन्होंने प्रयत्नों की पराकाष्ठा की। याज्ञवल्क्य मुनि को भारतीय तत्वज्ञान का जनक माना जाता है। उनका प्रपंच भी कैसा था?
सामान्य मानव एक गृहस्थ का निर्वाह करने में त्रस्त हो जाता है। लेकिन महर्षि याज्ञवल्क्य की दो पत्नियां हैं-कात्यायनी और मैत्रेयी। किन्तु उनका गृहस्थ आश्रम अत्यन्त सफल है।– और उनका वैराग्य कैसा था? जिस दिन राजा जनक ने उनसे पूछा कि ‘ महाराज, सन्यास कैसा होता है? तब उन्होंने कहा कल प्रातःकाल दिखाऊंगा।’ इसके अतिरिक्त उन्होंने कुछ नहीं कहा। प्रातःकाल उन्होंने संन्यास धारण कर जनक को संन्यास के दर्शन कर दिये। जितना उन्होंने कहा उतना कर दिखाया।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).