Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भक्ति का इत्र- भक्ति प्रदर्शन की वस्तु नहीं है, वह तो हृदय से परमात्मा को पाने की विधि है. भक्ति को प्रकट मत करो. उसे गुप्त रखो, नहीं तो वह इत्र की तरह उड़ जायेगी. तुम भजन-कीर्तन में सम्मिलित होकर तो खूब उछल-कूद करते हो, किंतु अपने घर के किसी कोने में परमात्मा के सामने अकेले बैठकर, उन्हें रिझाने के लिए कभी कोई यत्न नहीं करते हो.
बाहर तो खूब नाच-गान करते हो, किंतु यदि प्रभु के सन्निकट बैठकर अंतर के भावों को नहीं जग पाते तो तुम्हारी यह भक्ति परमात्मा के निमित्त नहीं है, मात्र लोगों को दिखाने के लिए है. याद रखो! समाज को बताने के लिए नहीं, अपितु भक्ति तो प्रभु प्रेम में निमग्न होने के लिए की जाती है. स्टील के बर्तन चाहे जितने स्वच्छ दिखाई दें, किंतु वे पवित्र एवं आरोग्यप्रद नहीं है.
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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