Reporter
The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, प्रभु श्री राम और उनके परिजनों ने जो धर्माचरण किया, उसका यथार्थ ठीक से समझना होगा। धर्मशास्त्र में लिखे गये शब्दों का ही विचार करें तो श्री भरत यदि स्वयं का राज्याभिषेक करवा भी लेते तो वह अनुचित नहीं कहलाता अथवा श्री राम भी चित्रकूट से अयोध्या लौट सकते थे।
कदाचित उन्हें अयोध्या का त्याग भी नहीं करना पड़ता। लिखित धर्मानुसार श्री लक्ष्मण के वनगमन का कोई कारण ही नहीं था। सीता त्याग के अनपेक्षित प्रसंग में भगवती सीता भी अयोध्या के न्यायालय में श्री राम के विरुद्ध अपील कर सकती थी। उनके लिये यह कोई कठिन नहीं था। उपरोक्त सब कुछ शाब्दिक धर्म के नियमाधीन रहकर सम्भव था, किन्तु धर्माचरण में तत्पर इस परिवार ने शाब्दिक धर्म की भी सीमा के पार जाकर उसके भव्योत्कट मुख्य भाव अर्थात् ‘ धर्मसार ‘ को केंद्र में रखकर तदनुसार आचरण किया।
इस आचरण के लिए सभी ने अपने पूज्य गुरुवर महर्षि वशिष्ठ के आग्रह को भी विनयपूर्वक नकार दिया और वशिष्ठ से लेकर शबरी तक ही नहीं अपितु अंगद तक, सभी के हृदय में एक पृथक आत्मीयता का ‘ भक्तिभाव ‘ निर्माण किया। यह धर्मसार आधारित जीवन शैली ही इच्छाकु वंश का स्थाई भाव है और यही आज तक सारे संसार को लगी हुई श्रीराम कथा की लगन का महत्वपूर्ण कारण भी है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि धर्मसार के इस सूत्र का विस्मरण होने के कारण ही हमारा समाज बिखर गया है।
मुख्य भाव को भूलकर शब्दों के जाल में आबद्ध धर्ममार्तंडों ने वर्तमान समाज को धर्मसार के इस सूत्र से दूर रखा। आज के समय में रामायण का श्रवण मनन और निद्दिध्यासन अत्यंत आवश्यक है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).