Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, प्रतिवर्ष बृजवासी कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को इंद्र की पूजा किया करते थे। 56 प्रकार का भोग बनाकर इंद्र को भोग लगाते थे। इंद्र की पूजा की तैयारी चल रही थी, इंद्र को बहुत अभिमान था। मैं देवताओं का राजा हूं उनके अभियान को समाप्त करने के लिए भगवान ने इंद्र की पूजा रोक दिया। भगवान की प्रत्येक लीला ‘सर्वजन जनहिताय-सर्वजन सुखाय’ होती है।
श्री गर्गाचार्य जी महाराज ने नामकरण के समय ही बताया था। “नारायण समोगुणैः” बाबा आपका बालक नारायण के समान गुणों वाला होगा। गोवर्धन पूजा के पहले भगवान की बहुत लीलाएं हो चुकी थी, बृजवासियों को पता लग गया है कि श्री कृष्ण परमात्मा हैं, उनकी आज्ञा पालन करने में कल्याण है।
समस्त बृजवासी भगवान की आज्ञा से पूजा,परिक्रमा के लिए गोवर्धन की यात्रा पर चल पड़े।’ मैं तो गोवर्धन को जाऊं मेरे वीर नाय माने मेरो मनवा’। गोवर्धन पूजा के समय भगवान दो रूप में हो गये। एक रूप में भगवान बृजवासियों के साथ पूजा में शामिल है और दूसरे रूप में गिरिराज जी के स्थान पर प्रकट हो करके चतुर्भुज रूप में दर्शन दे रहे हैं। गोवर्धन पूजा में भगवान कहते हैं भक्तों ‘ शैलोऽस्मि ‘ मैं गिर्राज हूं।श्री गिरिराज जी के रूप में साक्षात् भगवान ही दर्शन दे रहे हैं।
कई लोग प्रश्न करते हैं कि क्या आपने भगवान को देखा है? श्रीमद्भागवत महापुराण में लिखा है कि जिसने भगवान को न देखा हो, वे गोवर्धन आ करके श्री गिरिराज जी के रूप में प्रत्यक्ष श्री राधा कृष्ण भगवान् का दर्शन करें। धर्मशास्त्र कहते हैं प्रत्येक मंदिर में जो भगवान का विग्रह विराजमान है वह साक्षात् भगवान ही विराजमान है। भगवान का दर्शन तीन प्रकार से होता है- स्वप्न में दर्शन, मंदिर में भगवान का दर्शन और कभी भजन साधन करते-करते भगवान की करुणा कृपा से प्रत्यक्ष किसी रूप में दर्शन।
लेकिन मंदिर में विधि विधान से जा करके दर्शन करना ही सर्वोपरि दर्शन माना गया है। स्वप्न में दर्शन और प्रत्यक्ष किसी रूप में भगवान का दर्शन,इससे भी बड़ा दर्शन मंदिर में विधि विधान से जा करके दर्शन, पूजन, प्रणाम, परिक्रमा, आरती, वंदना को सर्वोपरि माना गया है। अध्यात्म में शास्त्र ही प्रमाण है। शास्त्र कहते हैं प्रत्येक व्यक्ति को नित्य संध्या वंदन पूजा पाठ के बाद समय निकाल करके भगवान का दर्शन करने घर के समीप के मंदिर में अवश्य जाना चाहिए।
प्राण प्रतिष्ठा के समय भगवान मंदिर में भक्तों के ऊपर करुणा कृपा करके प्रकट होते हैं, भगवान अपेक्षा भी रखते हैं कि समीप वाले लोग तो मंदिर अवश्य ही आयेंगे। जो भगवान को अपना मानकर नित्य दर्शन करने जाते हैं, भगवान भी उस परिवार को अपना परिवार मानते हैं और उसके हर कार्य में खड़े रहते हैं। पूरे परिवार का मंगल होता है। हम दूर तीर्थ में दर्शन करने तो चले जाते हैं, लेकिन घर के समीप मंदिर में सन्नाटा ही छाया रहता है, यह अच्छा नहीं है। अपने समीप के मंदिर में सुबह शाम पूजा आरती में पहुंचना ये बड़े सौभाग्य की बात है।
सभी हरि भक्तों को तीर्थगुरु पुष्कर आश्रम एवं साक्षात् गोलोकधाम गोवर्धन आश्रम के साधु-संतों की तरफ से शुभ मंगल कामना। श्रीदिव्य घनश्याम धाम
श्रीगोवर्धन धाम कॉलोनी बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्रीदिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट, ग्रा.पो.-गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).