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The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, सावधानी पूर्वक जीवन जीना, पूरा जीवन ही भगवान की भक्ति बन जाता है. बड़े-बड़े संतों और भक्तों ने कबीर, रैदास आदि ने व्यापार करते-करते ही प्रभु की प्राप्ति कर लिया. व्यापार करते समय ग्राहक में भी भगवान को देखने वाले के लिए वह व्यापार भी भक्ति में बन जाता है. देखो नामदेव जी दर्जी थे, गोरा कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाते थे, कबीर साहेब जुलाहा थे. ये सभी अपना-अपना धंधा ही करते थे, परंतु सर्वत्र प्रभु को देखकर ग्राहक में भी प्रभु का अनुभव करते थे. एक बार आकाशवाणी से जांजलि ऋषि को आज्ञा हुई,
‘सत्संग करना हो तो जनकपुर में जाकर तुलाधार वैश्य से मिलो. जब जांजलि तुलाधार कि यहां गए, तब तुलाधार दुकान में ही थे. वैश्य ने पूछा “आकाशवाणी सुनकर आप ही आये हैं न.” जांजलि को आश्चर्य हुआ! पूछा, ‘तुम्हारा गुरु कौन है?’ तुलाधार ने कहा मेरा व्यवसाय ही मेरा गुरु है. तराजू की डंडी की तरह मन की वृत्तियों को सीधा रखता हूं. न किसी को कम देता हूं और न किसी से ज्यादा नफा लेता हूं,
क्योंकि मेरे ग्राहक में भी प्रभु का ही अंश है. अपने मां-बाप को ईश्वर का स्वरूप मानकर उनकी सेवा करता हूं और परमात्मा को याद किया करता हूं. जांजलि ने प्रणाम किया. हर जगह और हर समय प्रभु को याद रखने वाले व्यक्ति के लिये व्यापार भी परमात्मा को प्राप्त करने का साधन बन जाता है.
शरीर में भले ही रहो, पर शरीर से अलग हो-ऐसी भावना से जियो. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).