ध्यान, ज्ञान, भक्ति के तेज से भगवान का होता है दर्शन: दिव्य मोरारी बापू

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthanपरम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भागवत में तीन शब्द है- तेजो, वारि, मृदां,। भगवान तीन रूपों में ही मिले। अठारह हजार श्लोकों वाली इस भागवत में भगवान तीन तरह से मिले।
1-तेजो÷ अपने साधना के तेज से भगवान का दर्शन होता है। योग करो, ध्यान, ज्ञान, भक्ति के तेज से भगवान का दर्शन होता है। तिजोरी में खजाना पड़ा है दीपक जलावो दिखाई पड़ेगा। उसके लिए योगाग्नि, प्रेमाग्नि प्रकट करो। दर्शन पालो। इसीलिए स्वामी जी लोग गेरुआ वस्त्र जो अग्नि का रूप है, पहनते हैं। ध्रुव, व्यास आदि को भी तप से मिले।
2-वारि÷जल- गोपियों ने सब जगह भगवान को ढूंढा भगवान नहीं मिले।रुरुदुः सुस्वरं राजन। इतना रोई कि बिहारी जी प्रकट हो गये। भागवत में नारद जी ने सब जगह ढूंढा भगवान नहीं मिले, नारद जी रोने लगे, भगवान आ गये। भगवान ने कहा तुम्हारे रोने में देरी थी, मेरे आने में देरी नहीं थी। जीव रोता है अभाव में, कोई घाटा लग गया, लेकिन भक्त रोता है भाव में,कभी-कभी प्रभु भी रोते हैं स्वभाव में। कोई सुदामा मिल जाये,- देखि सुदामा की दीन दशा, करुणा करके करुणा निधि रोये। पानी परात को हाथ छुयो नहीं, नैनन को जलसों पग धोये।। मीरा के लिए रोते। “ये यथा मां प्रद्यन्ते” प्रभु जल से मिलेंगे। जिन आंखों से नीर बहा करता है, उन आंखों में राम रमा करता है।
वाग् गद गदात् द्रवते यस्य चित्तं, आंसुओं से भगवान मिलते हैं। थोड़ा आंसू बहाओ मिल जायेगा।
कबिरा हंसना दूर कर, कर रोने से प्रीत।
बिन रोये कित पाइया प्रेम पियारा मीत।।
3-मृदां ÷ मिट्टी से मिलते हैं। तीसरा भगवान किसी को मिलते हैं तो रज से मिलते हैं। मिट्टी से प्रभु का दर्शन होता है। वृंदावन जाओ वहां की रज लगाओ, तीर्थ की रज को प्रणाम करो, ईश्वर समेत अनंत भक्तों की चरण रज को प्रणाम करो। जिन्होंने पूजा नहीं किया, जब तक रज की पूजा नहीं किया, उनको प्रभु कैसे मिलेंगे? जब कोई साधक संतों के चरण में झुकता है,तो प्रभु के आने का रास्ता खुल जाता है।
भागवत पर सुबोधिनी टीका लिखने वाले, जगतगुरु श्री वल्लभाचार्य जी ने सुना था, ब्रज में भगवान मिलते हैं।लेकिन भगवान तो नहीं मिले, बड़े दुःखी हुए, फिर सोचा भगवान न सही चरण रज तो है। जिससे भगवान के चरणों का स्पर्श हुआ। उठाकर सिर पर डाला तो क्या देखा छोटे-छोटे बच्चों के साथ भगवान गेंद खेल रहे हैं, दर्शन हुआ। जिन्हें ढ़ूँढ़ा था वेदों में, वो मिला ब्रजरज में, उस जगह का नाम रखा रमणरेती। मधुराष्टकम् की रचना महाप्रभु जी ने भगवान के दर्शन के उपरांत रमण रेती में ही किया।
सभी हरि भक्तों को तीर्थगुरु पुष्कर आश्रम एवं साक्षात् गोलोकधाम गोवर्धन आश्रम के साधु-संतों की तरफ से शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम
श्रीगोवर्धन धाम कॉलोनी बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्रीदिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट, ग्रा.पो.-गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).

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