Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, मन को पवित्र रखने के लिए जिसको आंखें बन्द करने की आवश्यकता मालूम पड़ती है, जिसका मन आंखें बन्द रखने पर ही पवित्र रहता है, उसका मन आंख खुलते ही बिगड़ सकता है. प्रभु-प्रेम की प्रकाष्ठा पर पहुंची हुई गोपियां खुली आंखों से ब्रह्म चिंतन कर सकती थीं और प्रत्यक्ष दर्शन प्राप्त कर सकती थीं.
जिसे खुली आंखों से जगत ही दिखाई देता है, उसे ब्रह्म का चिंतन करने के लिए आंखें बन्द करनी पड़ती है. परन्तु गोपी को तो खुली आंखों से भी भगवान ही दिखाई देते थे, इसीलिए उसने उद्धव से कहा था, ” उद्धव! तुम्हारे परमात्मा सगुण है या निर्गुण, इसकी मुझे चिन्ता नहीं है. मैं तो कृष्ण-कृष्ण कहती हूं और मेरा कृष्ण मेरे पास आकर खड़ा रहता है. फिर चाहे वह द्वारिका में हो या मथुरा में.”
भक्ति की कैसी पराकाष्ठा है? घर में अनाशक्त रहकर ही सगे-सम्बन्धियों की सेवा करो. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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