Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, लोभ और संतोष- भागवत में कथा आती है कि हिरण्याक्ष का नाश करके बराहनारायण ने पृथ्वी का उद्धार किया. यह हिरण्याक्ष है सोने और संपत्ति पर आंख लगाने वाला लोभ और बराह का अर्थ है- जो मुझे मिलता है उसे उत्तम मानकर किया गया संतोष. संतोष के द्वारा लोभ का नाश होगा, तभी जीवन में शांति मिलेगी.
जहां तक लोभ है, वहां तक सत्कर्म में प्रीति पैदा नहीं होती. मनुष्य को जो मिला है उसमें संतोष नहीं है. उसे तो जो नहीं मिला है, वही चाहिए. इसीलिए वह उसके पीछे-पीछे भटकता रहता है और जीवन की शांति खो बैठता है. मनुष्य लोभ छोड़ नहीं सकता, इसीलिए वह सत्कर्म नहीं कर सकता. लोभ छोड़कर संतोषपूर्वक जीवन व्यतीत करोगे, तभी सत्कर्म में प्रीति पैदा होगी और सर्वेश्वर की प्राप्ति होगी.
मृत्यु के समय तो जीवन में किया हुआ नाम-स्मरण और सत्कर्म ही साथ जाता है. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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