ईश्वर की आराधना से युक्त होना चाहिए हमारा आपका जीवन: दिव्य मोरारी बापू

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthanपरम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्रीमद्भागवत महापुराण में बारह स्कंध हैं। जिसमें दशम स्कंध को भगवान का हृदय कहा गया है। रासलीला के जो पांच अध्याय हैं। इसे रास पंचाध्यायी कहते हैं। रास पंचाध्यायी को भगवान का पंच प्राण कहते हैं। रास का अर्थ होता है जीव और ब्रह्म का मिलन।
“रसानां समूहः रासः ” रस का अर्थ आनंद होता है। जहां आनंद ही आनंद हो रहा हो, उसे रास कहते हैं। आनंद आत्मा के ज्ञान को कहते हैं। मथुरा लीला में भगवान कंस के धनुष यज्ञ में पधारते हैं। भगवान के हाथों कंस का उद्धार होता है। आध्यात्मिक दृष्टि से कंस को कलिकाल का स्वरूप बताया गया है। कराल कलिकाल के दोषों से बचने के लिए भगवान का आश्रय ही श्रेष्ठ साधन है।
द्वारिका लीला में भगवान के विवाह की कथा आती है। भगवान श्री कृष्ण का महारानी रुक्मिणी के साथ विवाह हुआ। महारानी रुक्मिणी महालक्ष्मी का स्वरूप और भगवान साक्षात नारायण हैं। भगवान श्री कृष्ण और महारानी रुक्मिणी के विवाह का एक आध्यात्मिक पक्ष भी है। हमारा आपका जीवन ईश्वर की आराधना से युक्त होना चाहिए।
हमारा-जीवन ऐश्वर्य सम्पन्न एवं भक्ति संपन्न हो। धर्म हमें निर्धन रहना नहीं सिखाता, धर्म हमें नीति से प्राप्त धन से संपन्न होना सिखाता है। अगर यह दोनों हो गया तो फिर-आनंद ही आनंद,और मंगल ही मंगल है। इसके लिए जीवन में पुरुषार्थ एवं भजन दोनों होना आवश्यक है।
सभी हरि भक्तों को तीर्थगुरु पुष्कर आश्रम एवं साक्षात् गोलोकधाम गोवर्धन आश्रम के साधु-संतों की तरफ से शुभ मंगल कामना। श्रीदिव्य घनश्याम धाम
श्रीगोवर्धन धाम कॉलोनी बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्रीदिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट, ग्रा.पो.-गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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