प्रत्येक पुराण में मन्वंतर लीला का किया गया है निरूपण: दिव्य मोरारी बापू

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthanपरम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, किसी भी पुस्तक को हम पुराण नहीं कह सकते हैं। उसके अंदर पुराण के लक्षण विद्यमान होना आवश्यक है। श्रीमद्देवीभागवत महापुराण में लिखा है-
सर्गश्च प्रतिसर्गसश्च वंश मन्वन्त्राणि च।
वंशानुचरितं चैव पूराणं पंच लक्षणम्।।
सृष्टि कैसे उत्पन्न होती है और हर कल्प में सृष्टि के उत्पन्न का जो क्रम है, इसका वर्णन पुराण का प्रथम लक्षण है। कल्पान्त में जब प्रलय का समय आता है तो ये पूरी सृष्टि किसमें लीन होती है। यह प्रतिसर्ग लीला है। जीव ईश्वर का अंश है, वह ईश्वर के पास से ही जगत में आता है और पुनः ईश्वर में ही लीन हो जाता है। समुद्र से पानी मानसून बनकर आता है, बरसात होती है। बाद में नदियों के माध्यम से समुद्र में मिल जाता है।
प्रत्येक पुराण में मन्वंतर लीला का निरूपण किया गया है। मुहूर्त, घड़ी, दिन-रात, सप्ताह, पक्ष, महीना, वर्ष, युग, चतुर्युगी मन्वंतर, और कप का निरूपण किया गया है। यह पुराण का तीसरा लक्षण है। प्रत्येक पुराण में जिस वश में भगवान का अवतार हुआ अथवा भगवान के भक्तों का अवतार हुआ, उसका वर्णन किया गया है। ध्रुव और प्रहलाद जी जैसे भक्तों का अवतार जिस वंश में हुआ है। उसका वर्णन भी पुराणों में किया गया है।
जिस वंश में भगवान के अवतार हुए हैं उसका वर्णन भी पुराणों में किया गया है भक्त और भगवान के वंश का वर्णन पुराण का चौथा और पांचवा लक्षण है। श्रीमद्भागवत महापुराण में पहले भगवान राम के प्राकट्य की कथा और पूरा श्री राम चरित सुनाया। उसके बाद श्री कृष्ण जन्म की कथा सुनाया। आचार्यों का मत है कि हमारे जीवन में भगवान राम की मर्यादा आ जाय, तब हम श्री कृष्ण कथा के अधिकारी बनते हैं।
सभी हरि भक्तों को तीर्थगुरु पुष्कर आश्रम एवं साक्षात् गोलोकधाम गोवर्धन आश्रम के साधु-संतों की तरफ से शुभ मंगल कामना। श्रीदिव्य घनश्याम धाम
श्रीगोवर्धन धाम कॉलोनी बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्रीदिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट, ग्रा.पो.-गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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