Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, जीवन में ज्ञान का उदय हो जाये तो उसकी पहचान है शोक की निवृत्ति. फिर जीवन में किसी प्रकार का शोक नहीं रह जाता. अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से पूँछा कि आपको सबसे ज्यादा प्रिय कौन है? भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवत गीता में कहा कि मुझे ज्ञानी सबसे ज्यादा प्रिय है. क्योंकि, ज्ञानी की दृष्टि दिव्य होती है, उसकी दृष्टि में कहीं मैं ओझल नहीं रहता, हर जगह वह मेरा दर्शन करता है. अर्जुन ने कहा, मुझे ज्ञान प्राप्त करना है. श्री भगवान बोले ज्ञान प्राप्त करने के लिए 6 सूत्र अपना लो ज्ञान प्राप्त हो जायेगा.
1- अटूट श्रद्धा.
2- ज्ञान प्राप्त करने की तत्परता.
3- इंद्रिय संयम.
4- ज्ञानी गुरु की शरणागति.
5- ज्ञान संबंधी, तत्वज्ञान संबंधी, जीव-ब्रह्म-माया संबंधी जिज्ञासा.
6- जिससे हमें ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त हुआ, ऐसे ज्ञानी गुरु की सेवा.
सबसे पहले हम ज्ञानी गुरु के पास जायँ और उनको वंदन करें, ज्ञानी गुरु की अनुमति प्राप्त कर ज्ञान संबंधी जिज्ञासा करें, जिससे हमें ज्ञान प्राप्त हो, उसके प्रति सेवा भाव भी रखना चाहिए, तभी ज्ञान हमारे जीवन में पुष्पित, पल्लवित होगा. श्रद्धावान व्यक्ति को ज्ञान प्राप्त होता है. श्रद्धा कहते हैं शास्त्र और गुरु के वाक्य पर प्रत्यक्षवत विश्वास करना, इसी का नाम श्रद्धा है. ज्ञान के लिए तत्परता भी चाहिए जैसे- लोभी व्यक्ति धन के प्रति तत्पर होता है.
जितना जगाओ जाग जायेगा, जितना दौड़ओ दौड़ जायेगा, इसी तरह से ज्ञान चाहने वालों में तत्परता होनी चाहिए, कहीं जाना पड़ेगा तो ज्ञान के लिए जायेंगे, जागना पड़ेगा तो जागेंगे और सबसे आखरी बात बताया संयम, जिसके जीवन में संयम नहीं है, इंद्रिय संयम नहीं है, उसके पास भी ज्ञान स्थिर नहीं रह पाता. ज्ञान की प्राप्ति होते ही अखंड शांति प्राप्त हो जायेगी. ज्ञान आज प्राप्त होगा, शांति कभी प्राप्त होगी ऐसा नहीं. ज्ञान को उपलब्ध होते ही जीवन में अखंड शांति हो जायेगी. यही ज्ञान की पहचान है.
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