Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, मनु और शतरूपा ने जब अपनी पुत्री देवहूति का हाथ कर्दम ऋषि के हाथ में देने की इच्छा प्रकट की तो कर्दम ने कहा, मैं संसार और संसार के सुख पाने के लिए नहीं, परन्तु पत्नी के साथ नित्य सत्संग करके आत्मसुख प्राप्त करने के लिए ही विवाह करना चाहता हूं. मुझे संसार की भूख वाली पत्नी नहीं धर्मपत्नी चाहिए.
हमारा सम्बन्ध संसार का उपभोग करने के लिए नहीं, बल्कि नाव और नाविक की तरह संसार-सागर पार करने के लिए होगा. अतः एक पुत्र की प्राप्ति के बाद मैं संन्यास लूंगा, क्या आपको स्वीकार है?” मनु-शतरूपा बड़ी उलझन में पड़े, किंतु देवहूति ने तपस्वी की सेवा स्वीकार कर ली और बल्कल वस्त्र पहन लिए. विवाह के बाद दम्पती पति-पत्नी अनेकों वर्ष तक ईश्वर आराधना में लगे रहे, समस्त व्रत का पालन किया.
और पत्नी ने पति सेवा के व्रत का निर्वाह किया. सेवा से प्रसन्न होकर कर्दम ने पत्नी की इच्छा को पूर्ण करना चाहा तो पत्नी ने कहा, “और दूसरी कोई इच्छा नहीं है. हाथ पकड़ कर लाये हो तो हाथ पकड़ कर प्रभु के दरबार में भी पहुंचा दीजिए.” ऐसे दिव्य दाम्पत्य के द्वार पर ही कपिल भगवान पुत्र रूप में पधारे. विवाह के बारे में कैसी सुंदर जीवन दृष्टि है. भगवाँ वस्त्र पहनने वाला नहीं बल्कि हृदय को भगवाँ बनाने वाला ही परमहंस है.
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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