Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्रीविष्णुमहापुराण परम सात्विक पुराण है और इस पुराण में तत्वों का निरूपण किया गया है. ईश्वर जीव और माया इन तीन तत्वों का निरूपण पाराशर महर्षि ने बड़े सरल ढंग से किया है. इसीलिए विष्णु महापुराण को पुराण रत्न कहते हैं. बाकी जितने पुराण हैं, पुराण हैं, विष्णु महापुराण, पुराण रत्न है.
श्री यमुनाचार्य स्वामी जी महाराज अपने आलविन्दार स्तोत्र में पाराशर महर्षि को प्रणाम करते हुए कृतज्ञयता ज्ञापित करते हैं कि मैं पाराशर महर्षि के चरणों में प्रणाम करता हूं कि जिन्होंने तत्व पूर्वक चिद् अचिद् और ईश्वर इन तीन तत्वों का स्वरूप, इनका स्वभाव और परमात्मा की प्राप्ति का साधन, इन विषयों का निरूपण जी पुराण रत्न में किया है. ऐसे पाराशर महर्षि को मैं प्रणाम करता हूं. विष्णु पुराण के रचयिता पाराशर महर्षि हैं. ऐसे अष्टादश पुराण के रचयिता वेदव्यास जी ही माने जाते हैं. अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयं. उन अठारह पुराणों में विष्णु पुराण की रचना व्यास जी के पिता पाराशर महर्षि ने की है. लेकिन इसको भी व्यास जी की रचना मान ली जाती है.
सत्तरह पुराण व्यास जी की रचना है जैसे पिता की संपत्ति पुत्र की संपत्ति होती है, गुरु की संपत्ति शिष्य की संपत्ति होती है, इसी तरह व्यास जी के पिता की संपत्ति व्यास जी की संपत्ति है. 14 विधाओं में एक विद्या का नाम पुराण विद्या है. चौदह विद्या का नाम हम सुनते हैं. पुराणं न्यायं मीमांसा धर्म शास्त्रांग मिश्रिताः. वेदास्थानानि विद्यानां धर्मसत्यच् चतुर्दशः।। कहते हैं हनुमान जी चौदह विद्यओं के पंडित हैं. विद्यवान गुनी अति चतुर. राम काज करिबो को आतुर।।
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