भक्ति में मग्न हो जाने पर ही मिलती है शांति: दिव्य मोरारी बापू

Shivam
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, आंख मन और जीवन- ज्ञानी या विद्वान बनने से शांति प्राप्त नहीं होती. वह तो भक्ति में मग्न हो जाने पर ही मिलती है. जिसकी आंख बिगड़ती है, उसका सब कुछ बिगड़ जाता है. पाप सबसे पहले आंख में आता है, फिर मन में प्रवेश करता है, उसके बाद वाणी में घुल-मिल जाता है और अंत में व्यवहार में रूपांतरित हो जाता है.
आंख बिगड़ने से ही मन बिगड़ा है और मन बिगड़ने से जीवन बिगड़ जाता है. रावण की आंख में बुराई थी और हिरण्याक्ष की आंख में लोभ था इसीलिए उसका मन बिगड़ा, जीवन विनष्ट हुआ और बहुत अपयश प्राप्त हुआ. आज कोई भी आदमी अपने पुत्र का नाम रावण और हिरण्याक्ष रखने को तैयार नहीं होगा. हिरण्याक्ष जब चलता था तब उसके पैर चाहे धरती पर रहते थे.
किंतु शिर कोई स्पर्श करता था, इतना होते हुए भी उसके राज्य में प्रजा को बहुत कष्ट था. जो राजा लोभी ही होता है उसके हाथ से अनंत पाप होते हैं एवं उनकी प्रजा अत्यंत दुखी होती है. ऐसा हिरण्याक्ष हमारी आंख में या जीवन में प्रवेश नहीं कर जाये, इस दृष्टि से विवेक पूर्वक ‘प्रवेशबन्द’ का बोर्ड लगाकर जीवन को संतोष का सागर बनाओ.
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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