Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भगवान व्यास स्वयं कहते हैं। “पुराण विद्या च सनातनी ” यह विद्या सनातनी है। इसका मतलब द्वापर में पाराशर महर्षि और व्यास जी पुराण की रचना करते हैं। इसके पहले पुराण नहीं था, ऐसा नहीं। सतयुग, त्रेता में भी पुराण रहता है, लेकिन लिपिबद्ध नहीं रहता। वह महर्षियों के मस्तिष्क में रहता है, उनके ज्ञान में रहता है। जिस प्रकार चारों वेद अनादि है, उसी प्रकार पुराण भी अनादि है।
वेदों में जो तत्व का निर्णय है। वेदों का जो विषय है, उसी को पुराणों में कथाओं के माध्यम से सरलता से प्रस्तुत किया गया है। जो विषय वेद में हम नहीं समझ पाते, पुराण में सरलता से समझ लेते हैं। पुराण विद्या सबके लिए है, वेद विद्या सबके लिए नहीं है। वेद वही पाठ कर सकता है जो संध्या वंदन करता है। पुराण विद्या बड़ी सरल विद्या है। इससे व्यक्ति को मुक्ति की प्राप्ति होती है। एक कथा है कि ब्रह्मा जी चार मुख से चार वेद और पांचवें मुख से पुराण विद्या का पाठ करते थे। ब्रह्मा जी पहले पांच मुख वाले थे, चार मुख वाले बाद में बने हैं।
पुराण विद्या सुनकर सब मुक्त होने लगे। सारी सृष्टि मुक्त हो जाये तो भगवान की लीला कैसे चलेगी. लोकवत्तु लीला कैवल्यं , वेदांत में भगवान वेदव्यास जी कहते हैं कि – यह तो भगवान की लीला है। सब मुक्त होकर चले जाएं तो लीला कैसे चलेगी। किसी देवता ने भगवान शंकर से कहा भोलेनाथ आप विश्वनाथ हो, कुछ दिन ही आप विश्वनाथ रहोगे। क्यों ! तब बोले जब विश्व ही नहीं रहेगा तो किस बात के आप विश्वनाथ रहोगे।सभी लोग मुक्त हो रहे हैं।
ब्रह्मा जी पांचवें सिर से पुराण विद्या का पाठ कर रहे हैं। पांचवें मस्तक को भगवान शिव ने काट दिया, पुराण पाठ बंद हो गया। वेद जो ज्ञान के मूल हैं, उनको जानने के लिए हमें स्मृति, पुराण, इतिहास की शरण में जाना पड़ता है। विष्णु पुराण में ब्रह्म, जीव, माया तत्व का वास्तविक निरूपण किया गया है।