Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, सम्पूर्ण प्रकृति में विकृति आ गई है, इसका सुधार सत्संग से ही हो सकता है. प्रकृति का दो अर्थ है- एक संसार की प्रकृति, जिसे माया भी कहते हैं और एक मनुष्य की व्यक्तिगत प्रकृति है, जिसे स्वभाव कहते हैं.
मति कीरति गति भूति भलाई। जब जेहि जतन जहां जेहि पाई।। सो जानब सत्संग प्रभाऊ। लोकहुँ वेद न आन उपाऊ।। बिनु सत्संग विवेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।।
1-मति: उत्तम बुद्धि, 2-भलाई: दूसरे के मंगल करने का स्वभाव, 3-कीर्ति: कीर्ति चाहते हैं, लेकिन उसके योग्य कोई कर्म नहीं करते. चाहते हैं स्वर्ग, कर्म ऐसा करते हैं कि नर्क भी देखकर नाक सीकोड़ ले. हम ये तो चाहते हैं कि हमारा भला हो, लेकिन हम किसी का भला नहीं चाहते. सच्चे अर्थ में मनुष्य बनना है, भगवत भक्त बनना है, ऐसी धारणा हो जाय तो कल्याण हो जायेगा. मनुष्य की प्रकृति में सुधार सत्संग से ही सम्भव है.
सभी हरि भक्तों को तीर्थगुरु पुष्कर आश्रम एवं साक्षात् गोलोकधाम गोवर्धन आश्रम के साधु-संतों की तरफ से शुभ मंगल कामना श्रीदिव्य घनश्याम धाम श्रीगोवर्धन धाम कॉलोनी बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्रीदिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट, ग्रा.पो.-गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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