Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, हमें व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन में कोई निर्णय लेते समय एक दुविधा निर्माण होती है कि कौन-सा निर्णय योग्य है और कौन-सा निर्णय अयोग्य है? यदि सत्य धर्म के अनुरूप कोई निर्णय लेना हो तो उसका मार्गदर्शन श्री राम कथा में ही मिलेगा। इसी कारण श्री रामचंद्र जी के लिए महर्षि वशिष्ठ कहते हैं- ‘रामो विग्रहवान धर्मः। ‘
विविध प्रकार के धर्मग्रंथों का अध्ययन करने की आवश्यकता नहीं। समस्त वेद, पुराण, शास्त्र, विविध कथाएं पढ़ने की किंचित भी आवश्यकता नहीं। एक ही उपाय है- ‘ रामादिवत् वर्तितव्यम् ।’ श्री रामचंद्र जी का तात्पर्य है घनी भूत धर्म।मानव जीवन के सबसे उत्तुंग गुणों के साक्षात साकार दर्शन भगवान श्री राम हैं। हम जानते हैं कि धर्म ही हमारे देश का प्राण है। किन्तु धर्म का अर्थ क्या है? अब धर्म का स्वरूप निश्चित करना भी एक बड़ी समस्या है, क्योंकि वेदादि शास्त्रों से लेकर अनेक संतों की वाणी तक का अवलोकन करें तो पायेंगे कि सभी ने धर्म की विवेचना की है।
यह विवेचना इतनी अधिक हो गई कि अंततः भगवान श्री कृष्ण को भी श्रीमद्भगवद् गीता में अर्जुन से कहना पड़ा- ‘किं कर्म किमकर्मेति काव्योऽप्यत्र मोहिताः। ‘ क्या करें और क्या नहीं करें इसका ज्ञान होना अत्यंत कठिन है। किस आचरण को धार्मिक कहें और किसे धार्मिक नहीं कहें, इसका निर्णय भी श्रेष्ठ ऋषि या उत्तम विद्वान तत्काल नहीं कर सकते। उनकी बुद्धि भी कुछ काल तक मोह के वशीभूत रहती है, धर्म इतना सूक्ष्म है। यद्यपि धर्म हमारा प्राण है किन्तु धर्म का ज्ञान होना भी उतनी ही दुर्धर बात है।
इसी बात को यदि सरलता से समझना हो तो उसके लिए अत्यंत सुंदर उपाय है। धर्मशास्त्रों की झंझट में पड़ने की आवश्यकता नहीं, केवल श्री राम कथा का श्रवण करें। श्री रामचंद्र जी के जीवन को आत्मसात करें। श्री राम का जीवन आत्मसात हुआ तो धर्म अपने आप समझ में आ जायेगा। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).