Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, ।।श्री विष्णु महापुराण कथा में अपवर्ग क्या है? मुक्ति क्या है? मुक्ति का भी वास्तविक निरूपण विष्णु पुराण में किया गया है। मुक्ति के विषय में भी लोगों के भिन्न-2 मत है। कोई कहते हैं कि आत्मा का नाश हो जाना ही मुक्ति है, जो लोग शून्यवाद को मानते हैं। कुछ लोग कहते हैं बिंदु का सिंधु में समा जाना मुक्ति है। यह भी विनाश ही है। बिंदु का अस्तित्व समाप्त है, दुनियां की कोई ताकत उस बिंदु को नहीं ढूंढ सकती। बिंदु का सिंधु में लय, आत्मा का परमात्मा में लय, ऐसी मुक्ति कौन चाहेगा।
जिसमें अपने अस्तित्व को खत्म कर देना है। श्री विष्णु महापुराण में कहा गया है कि मुक्ति लयात्मक नहीं है। श्री विष्णु महापुराण में मुक्ति भगवान के चरणों का कैंकर्य है। जीवात्मा माया से मुक्त होकर भगवान के धाम साकेत, गोलोक, बैकुंठ में जाकर सदा से सदा के लिए भगवान का किंकर बनाकर भगवान का कैंकर्य करता रहता है और भगवान के कैंकर्य में परम सुख की प्राप्ति होती है, वही मुक्ति है।