Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, एतावान सांख्य योगाभ्यां स्वधर्म परिनिष्ठया। जन्मलाभः परः पुसांऽन्ते नारायणस्मृतिः।।
मानव जीवन में जीवन रहते तीन साधन करना है। ये तीन साधन क्या है? यही कर्म, ज्ञान, भक्ति है। सांख्य-सांख्ययोग को ही ज्ञानयोग कहा जाता है। योगाभ्यां- केवल योगाभ्यां को भक्ति योग, “स्वधर्म परिनिष्ठया” अपने स्वधर्म में निष्ठा और पालन कर्मयोग है।
इन तीन योग में से किसी एक योग को साधन बनाकर मन को निर्मल बना लो, इतना भजन कर लो कि जब मृत्यु आवे तो थोड़ा भी दुःख न हो। संसार में किसी का स्मरण न हो, केवल भगवान का स्मरण हो। जन्म लाभः परः पुसां अंते नारायणस्मृतिः।। बड़े-बड़े महात्मा भी निरन्तर भगवान का स्मरण करते हैं-
जनम जनम मुनि जतन कराहीं। अन्त राम कहि आवत नाहीं।। लेकिन संसार बड़ा विचित्र है, अगर कोई मरते समय भगवान का स्मरण करना भी चाहे तो लोग करने नहीं देते। जब किसी की मृत्यु का समय आता है, डॉक्टर जवाब दे दिए ले जाओ सेवा करो, तब पूरे परिवार एवं संबंधियों को बुला लेते हैं, बाबूजी जाने वाले हैं अंतिम दर्शन कर लो, पूरा परिवार इकट्ठा हो जाता है। सब घेर कर बैठ जाते हैं, एक दूसरे का पहचान कराते हैं। उन्हीं की पहचान कराते हैं, जिनको जीवन भर पहचाना है।
अब जहां जाने की तैयारी है उनकी पहचान नहीं कराते हैं और न करने देते हैं। उन्हीं सबको देखा हुआ मरता है, उन्हीं जैसी शकल लेकर आ जाता है। “अंते या मति सा गति” श्री गीता जी का भी यही सिद्धांत है-
“मा मनुस्मर युद्ध च” मेरा स्मरण करते अगर तू मर भी गया तो तुम मुझे प्राप्त करोगे। क्योंकि मरते समय जो जिस भाव का स्मरण करता है, उसी भाव और रूप को प्राप्त हो जाता है। यं यं वाऽपि स्मरण भावं त्यजन् त्यन्त्ये कलेवरं। तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भाव भवितः।। अगला जन्म कैसा होगा इसके दो सिद्धांत हैं।
1- पहला कर्म का सिद्धांत है। जो जैसा कर्म करेगा वैसा जन्म उसको मिलेगा। अच्छा कर्म किया तो अच्छा जन्म मिलेगा बुरा कर्म किया तो बुरा जन्म मिलेगा।
2-दूसरा कारण- ये अंतिम स्मृति है। पहला जो कर्म का सिद्धांत है। वो सामान्य सिद्धांत है। और दूसरा स्मृति का सिद्धांत अपवाद सिद्धांत है।” अपवादो विधिर् बलवान् भवेत्।। अपवाद विधि बलवान विधि है। अपवाद विधि सामान्य विधि को भी बाधित करके लागू हो जाती है। राजर्षि भरत इतने बड़ी तपस्वी थे लेकिन अंत में हिरण का स्मरण करते हुए शरीर का त्याग किया तो उनको मृग बनना पड़ा।
मरण काल में भी रहा मृग शावक को ध्यान।
पुनर्जन्म में मृग भये राजामोह निधान।।
एक मृगा के कारणे भारत धारी दुइ देह।
तुलसी उनकी कवन गति जिनके नाना नेह।।
एक महात्मा कहते संसार को जग कहते हैं। जग जागने की जगह है। यहां क्यों आये जागने के लिए आये। सोने के लिए मौत ही काफी है। जगत में आकर जग जायें। जगायेगा कौन? संत, सद्गुरु, शास्त्र ही हमको जागते हैं। जग करके ईश्वर की तरफ चलें मंगल होगा।
सभी हरि भक्तों को तीर्थगुरु पुष्कर आश्रम एवं साक्षात् गोलोकधाम गोवर्धन आश्रम के साधु-संतों की तरफ से शुभ मंगल कामना। श्रीदिव्य घनश्याम धाम
श्रीगोवर्धन धाम कॉलोनी बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्रीदिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट, ग्रा.पो.-गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).