Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्रीमद्भागवत महापुराण भगवान श्रीराधाकृष्ण का ही स्वरूप है. भागवत और भगवान में रंच मात्र भी अंतर नहीं है. भगवान की शब्दमयी मूर्ति भागवत महापुराण है. श्रद्धा पूर्वक कथा श्रवण करने से भगवान कानों के माध्यम से हृदय में विराजमान हो जाते हैं.
धर्म शास्त्रों में भगवान की आठ प्रकार की मूर्तियों का है वर्णन
भगवान की आठ प्रकार की मूर्तियों का वर्णन धर्म शास्त्रों में है. पाषाण, काष्ठ, अष्टधातु सुवर्ण आदि, लेप्या-भित्ति में लिखित चंदनादि लेप की, लेख्या चित्ररूपा, सैकती, मृण्मयी, मनोमयी और मणिमयी, ये मूर्तियां आठ प्रकार की हैं. भागवत भगवान की शब्दों से निर्मित मूर्ति, शब्दमयी मूर्ति है. यह मूर्ति भगवान व्यास ने बनाया. किसी ने प्रतिष्ठा नहीं किया, भगवान स्वयं प्रतिष्ठित हो गये.
भगवान वेद व्यास की अंतिम कृति है श्रीमद्भागवत महापुराण
श्रीमद्भागवत भगवान की वांगमयी मूर्ति है. वेद पुराण और समस्त धर्म शास्त्रों का सार श्रीमद्भागवत की कथा है. श्रीमद्भागवत महापुराण में सभी धर्म शास्त्रों का सार-तत्व आ गया है. श्रीमद्भागवत महापुराण भगवान वेद व्यास की अंतिम कृति है और किसी भी लेखक की अंतिम कीर्ति में, प्रारम्भ से लेकर आखिरी तक सम्पूर्ण ज्ञान विज्ञान आ जाता है. श्रीमद्भागवत महापुराण की कथा सर्व सिद्धांतमय है, संसार के भय को मिटाने वाली कथा है. संसार में हर किसी को एक ही भय व्याप्त है, नष्ट होने का भय.
अगर आप किसी बात को लेकर भयभीत हैं, इसका मतलब है आपको ईश्वर और ईश्वर की सत्ता में पूर्ण विश्वास नहीं है. श्रीमद्भागवत की कथा श्रवण करने से ईश्वर की सत्ता में दृढ़ विश्वास हो जाता है और भाव जागे तो भय भागे, यह संतों की वाणी सिद्ध हो जाती है. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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