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The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, सांदीपन ऋषि के गुरुकुल में विद्यार्थी बहुत थे, किंतु श्री कृष्ण की मित्रता तो सुदामा के साथ ही रही. सुदामा अर्थात् सुयोग्य संयम. ऐसे सुदामा के साथ की गई मित्रता ही श्री कृष्ण की तरह हमें भी जीवन का साफल्य प्रदान करती है. जो बचपन से ही संयम का पालन करता है, उसी के जीवन में विद्या टिकती है.
यदि विद्यार्थी बिलासी हो गया, तो विद्या भस्म हो जाती है. आज के विद्यालय विद्या के नहीं, विलासिता के धाम बन गये हैं. वेदांत पढ़ने वाला प्रोफेसर यदि सिगरेट फूंकता है, तो विद्यार्थी के जीवन में किस प्रकार के संस्कार प्रवेश करेंगे. प्रोफेसरों और शिक्षकों के विलासी जीवन का बुरा असर अनुकरण की मनोदशा वाले विद्यार्थी के भावी जीवन पर पड़ता है. इसीलिए धर्मशास्त्र कहते हैं कि- जो अपने वाणी के साथ-साथ व्यवहार से भी उपदेश देता है,
वही सच्चा गुरु है. केवल वाणी से उपदेश देने वाला व्यक्ति गुरु पद का अधिकारी नहीं है. श्रवण भक्ति से पाप भस्म हो जाते हैं, मन का मैल धुल जाता है और परमात्मा के प्रति प्रेम जाग्रत होता है. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश).श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर(राजस्थान).