Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, पूर्ण वैराग्य के होने पर ही ज्ञानमार्ग में सफलता मिलती है और पूर्ण सद्भाव होता है, तभी भक्तिमार्ग में सफलता प्राप्त होती है. ज्ञानी का अपना मन ही नहीं होता, अतः किसी का भी सुख-दुःख उसका अपना सुख-दुःख नहीं बनता, तो उसको स्वयं के शरीर का सुख-दुःख भी प्रभावित नहीं कर सकता, क्योंकि वह सबकी ममता का त्याग करके और सबमें समत्व बुद्धि रख कर आनंदमय बन जाता है.
इसके विपरीत भक्त का मन सभी का अपना है. उसके लिए तो सभी जीवों में प्रभु ही विराजमान हैं. अतः वह सबके सुख-दुःख को अपना ही सुख-दुःख मानता है. वह सभी में अपने प्रभु का सानिध्य अनुभव करता हुआ सभी के प्रति एक जैसा सद्भाव रखकर आनंदपूर्ण बन जाता है. किंतु साधारण व्यक्ति के लिए ज्ञानमार्ग कठिन है, क्योंकि त्याग की बातें करना सरल है, उनका मन से त्याग करना अत्यंत दुष्कर है.
उसके लिए तो सभी में परमात्मा विराजमान है- इस भावना से सर्व के साथ एक जैसे प्रेममय व्यवहार की शिक्षा देने वाला भक्तिमार्ग ही उत्तम साधन है. प्रभु और परोपकार के लिए जो रोता है, उसके जीवन में कभी रोने का मौका नहीं आता. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर(राजस्थान).
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