श्री भरत जी का मंगलमय चरित अपने बड़े भाई के लिए है समर्पित: दिव्य मोरारी बापू 

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्री भरत जी का चित्रकूट की ओर प्रस्थान- अयोध्या से श्री भरत जी की यह यात्रा चित्रकूट की ओर निकली है। इससे पूर्व श्री रामचरितमानस में वर्ण आया है  प्रभु रामचंद्र अपने अधिकारों को तिलांजलि देकर वन की ओर प्रस्थान करते हैं। अब भरत भी केवल कर्तव्य पालन के रूप में नहीं अपितु अपने सम्मुख आये अधिकारों को तिलांजलि देकर वन की ओर निकले हैं। तमिल श्रीराम कथा के लेखक ‘ कम्ब ‘ इस प्रकरण में एक सुंदर मुद्दा उपस्थित करते हैं। वे कहते हैं श्री रामचंद्र का त्याग महान है किन्तु श्री भरत का त्याग उनसे भी महान है।
श्री रामचंद्र वनवास को जायें ऐसी मांग कैकेई और मंथरा ने की थी। अर्थात राम बनवास में जाएं, ऐसा कहने वाले कम से कम दो लोग तो अयोध्या में थे। कैकई माता ने तो स्पष्ट कहा था कि राम को यदि वन में नहीं भेजा तो मैं  स्वयं आत्मदाह कर लूंगी। इस स्थिति को टालने के लिए श्री राम का वन गमन अनिवार्य था। किंतु श्री भरत लाल जी वन गमन करें, ऐसी मांग करने वाला कोई भी नहीं था। अपने निकट चलकर आयी राजलक्ष्मी को ठुकराकर महात्मा भरत अपने भ्राता का अनुकरण करते हुए वनवास के लिए निकले। भरत पैदल ही निकले। वे रथ में नहीं बैठ रहे हैं। भरत को पैदल चलते देख अन्य लोग भी अपने-अपने वाहनों से उतरकर पैदल चलने लगे।
तब वशिष्ठ मुनि भरत से कहते हैं- ‘भरत , एक बात ध्यान में रखो, अपने साथ अनेक वृद्धजन हैं। तुम्हें पैदल चलते देख वे भी वाहन से उतरकर पैदल चल रहे हैं।अतः उन वृद्धजनों को पैदल नहीं चलना पड़े, इस हेतु तुम्हें रथ में बैठना होगा।’ गुरुदेव की आज्ञा पाकर भरत अब रथ पर सवार होते हैं। कुछ समय पश्चात उन्होंने देखा कि अब उनकी ओर किसी का ध्यान नहीं है, अतः वे पुनः रथ से उतरकर पैदल चलने लगे। श्री भरत के अंतःकरण में निरंतर श्री सीताराम जी का श्री लक्ष्मणजी का स्मरण हो रहा है और नेत्रों से अश्रुधारा अविरल बह रही है। उनका मन क्षणभर के लिए भी शांत नहीं है। सभी ने तमसा नदी पार किया, उन महान भक्तों की यात्रा आगे बढ़ रही है।
आगे चलकर सभी लोग श्रृंगवेरपुर के समीप पहुंचे। उस दिन उन्होंने श्री गंगा जी के तट पर विश्राम करने का निश्चय किया। दूसरे दिन गंगा पार कर आगे प्रस्थान करते हुए चित्रकूट पहुंचे। श्री भरत जी का मंगलमय चरित अपने बड़े भाई के लिए समर्पित है। आज जहां भौतिकवाद के कारण परिवार में एक दूसरे के प्रति प्रेम कम हो रहा है, ऐसी परिस्थिति में श्री रामायण की कथा अत्यंत मंगल दायिनी है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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