Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, ईश्वर का उपकार- श्रीमद्भागवत में पुरंजन की कथा आती है. पुरंजन का अविज्ञात नामक एक मित्र था. वह हमेशा उसकी गुप्त रूप से मदद करता था. यह पुरंजन अर्थात् जीवात्मा और अविज्ञात अर्थात् परमात्मा. जीव ईश्वर से अलग होने वाला उसी का अंश है. जीव को अपना समझने के लिए ही ईश्वर की उस पर अपार करुणा है.
वह जीवात्मा का हर समय गुप्त रूप से मदद किया करता है. प्रभु जीव से कहते हैं- धरती पर खेती करने का काम तेरा है तो पानी बरसाने का काम मेरा है. बीज बोना तेरे जिम्मे है, तो उनको अंकुरित करने का काम मेरे जिम्मे है. तू खेती की रखवाली करना, मैं अनाज पकाऊंगा. तू भोजन करना, मैं उसे पचाऊंगा. भोजन के बाद सोने का काम तेरा और उसे गाफिल दशा में तेरी रक्षा करने का काम मेरा है.
इस जीव पर परमात्मा के इतने उपकार है, फिर भी यह जीव कितना कृतघ्ज्ञ है? जिसके सहारे यह पैदा होता है, जीवित रहता है और विजय प्राप्त करता है, क्या उसके उपकार को यह कभी याद करता है. तुम अपना पिंडदान और श्रद्धा स्वयं ही करोगे तो ही सद्गति प्राप्त होगी. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).