Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, त्याग और समर्पण- अपनी इच्छा या बुद्धि से नहीं, अपितु संतों के निर्देशानुसार ही सत्कर्म करो. शिवजी त्याग रूप हैं और श्रीकृष्ण प्रेम स्वरूप है. भगवान शंकर ने विश्व के लिए सर्वस्व का त्याग किया और दुनियां को जिसकी आवश्यकता नहीं, उसे हलाहल विष और धतूरे को स्वीकार किया. श्रीकृष्ण ने सबके साथ प्रेम किया.
उन्होंने गालियां देने वाले या जहर खिलाने वाले और लात जमाने वाले को भी अपनाया. यही कारण है कि वे सर्वप्रिय बनें. शिवजी ज्ञानमार्ग बतलाते हैं और श्री कृष्ण प्रेममार्ग. ज्ञानमार्ग त्याग की सूचना देता है. जबकि भक्तिमार्ग समर्पण का संकेत करता है. भक्तिमार्ग में भी त्याग तो है, किंतु उसमें स्नेह का मिश्रण है. स्नेह पूर्वक छोड़ना ही समर्पण है और समझ पूर्वक छोड़ना ही त्याग है.
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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