Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, ।।तुम नौकर नहीं, मालिक हो।। वंदन में हृदय के भावों का संगम हो, तभी वह सार्थक होता है।
ज्ञानस्वरूप कपिल भगवान ने कर्दम और देवहुति के यहां पुत्र के रूप में अवतार धारण किया। कर्दम का अर्थ है- इंद्रियों का दमन करने वाला जितेन्द्रिय। आत्मा इंद्रियों का नौकर नहीं मालिक है।
मालिक यह दिन नौकरों की इच्छा के अनुसार काम करता है तो भी भारी अव्यवस्था पैदा हो जाती है। मालिक का कर्तव्य है कि वह नौकर को काबू में रखें। अतः कर्दम बनना है तो इंद्रियों की वृत्तियों का झूठा मोह छोड़ना पड़ेगा। वह जो मांगेंगी, उस विषय का निषेध करना पड़ेगा। जीवन में संयम है तो ही ज्ञान संचित हो सकेगा, अन्यथा आंख और जीभ हमें बारह-वाट कर देंगे। इन्द्रियाँ यदि प्रेम मांगे तो उनसे कहो, ‘ मैं तुम्हारा नौकर नहीं, मालिक हूं।
नौकर तो एक मात्र भगवान का ही हूं। ज्ञानस्वरूप कपिल को अपने हृदय के आंगन में बुलाना हो तो कर्दम बनो, एक-एक इंद्रिय को काबू में करो, संयम के द्वारा आंख तथा मन की शक्ति बढ़ाते रहो, तथा मन की सभी वृत्तियों को सत्कर्म में लगा दो। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश)श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर(राजस्थान).