Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, विवेक से थोड़ा सुख भी भोगो और भक्तिमय जीवन व्यतीत करके भगवान की प्राप्ति भी करो. तीन पग भूमि मांगने के लिए जाने वाले वामन भगवान को बलि के दरवाजे पर पहरा देना पड़ा और बलि के बंधन से स्वामी को छुड़ाने के लिए लक्ष्मी जी को बलि के यहां दासी बनना पड़ा. बलि ने उन्हें बड़ी बहन के समान स्वीकार किया और पति मुक्ति के निमित्त लक्ष्मी ने श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन बलि को राखी बांधी और रक्षाबंधन की भेंट के रूप में पति को उपहार में मांगा, तभी विष्णु को मुक्ति मिली.
भागवत की यह कथा प्रभु को बंधन में रखने की योग्यता को सूचित करती है. बलि राक्षस कुल का था, किंतु वह गुरु शुक्राचार्य की सेवा करता था. शुक्राचार्य की सेवा का अर्थ है- ब्रह्मचर्य का पालन. शुक्राचार्य की सेवा अर्थात् जितेंद्रिय जीवन. जो मन को जीत सकता है, वही जगत विजेता बन सकता है और उसी के दरवाजे पर लक्ष्मीनारायण को दास्त्व तो स्वीकार करना पड़ता है. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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