Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भागवत प्रसादी- भक्ति रस श्रीकृष्ण की कथा में सभी रस एकत्रित हो गये हैं। जिसे जो रस पसन्द हो, वह रस का आस्वादन कर सकता है। श्रीकृष्ण-कथा का रस ही ऐसा दिव्य है कि उसको पीने के बाद मन प्रभु चरणों में आकर्षित हो जाता है। जगत के अन्य रसों में मिठास थोड़ी होती है और कड़वापन अधिक होता है, जबकि श्रीकृष्णा विषयक भक्तिरस तो बस मीठा-ही-मीठा होता है। श्रृंगार रस भी खूब मीठा लगता है।
युवावस्था में तो यह स्वर्गीय सुख जैसा प्रतीत होता है, परन्तु शरीर के दुर्बल होने पर जब सयानापन आता है तो इस रस में छिपे हुए कड़वेपन की प्रतीति होती है और विचार आता है,” अरे इतना समय हमने हरि भजन के बिना ही व्यतीत कर दिया। इसलिए प्रभु विषयक भक्तिरस में ही अनोखी मिठास है। श्रीकृष्ण जिसे कृपा पूर्वक भक्तिरस का दान करते हैं, उसे संसार के सभी रस तुच्छ लगते हैं। शुकदेवजी जैसों ने तो इसी रस के लिए सब कुछ छोड़ दिया है और जन्मजात सन्यास ग्रहण कर लिए, किन्तु श्रीकृष्ण की कथा नहीं छोड़ी। कारण, श्रीकृष्ण कथा में जगत को भूलने और समाधि दशा में पहुंचने की अलौकिक शक्ति छुपी है। प्रभु की सेवा में प्रमाद शोभा नहीं देता।
परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भागवत प्रसादी- भक्ति रस श्रीकृष्ण की कथा में सभी रस एकत्रित हो गये हैं। जिसे जो रस पसन्द हो, वह रस का आस्वादन कर सकता है। pic.twitter.com/O5YgvlmEzP
— The Printlines (@TPrintlines) July 23, 2024