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The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, जरासंध और द्वारिका-जरासंध के जब लगातार आक्रमण होने लगे तब शांति और सुरक्षा के लिए श्री कृष्ण ने द्वारिका बसाई। जरासंध अर्थात् जरा – वृद्धावस्था। और द्वारिका अर्थात् द्वारे द्वारे कं।’ इंद्रियों के प्रत्येक द्वार पर श्री कृष्ण को विराजमान करने का नाम द्वारिका है।
जरासंध के साथ लड़ने की इच्छा श्री कृष्ण की नहीं थी, फिर भी वह तो हमेशा लड़ते ही रहते थे। हमारी इच्छा हो या न हो, फिर भी जब तक मथुरा रूपी काया में रहेंगे तब तक जरा-वृद्धावस्था के आक्रमण हमेशा होते रहेंगे। ऐसी स्थिति में जीवन की शांति प्राप्त करनी हो तो प्रत्येक इंद्रिय के द्वार पर प्रभु को विराजमान कर दो और देह को भक्तिमय द्वारिका बना लो।
और जो हमेशा संग्रह और परिग्रह में ही रचे-पचे हैं उनकी युवावस्था व्यर्थ नष्ट होती है। वे जीवन का कोई श्रेय करें, इसके पूर्व तो वृद्धावस्था आ पहुंचती है और जीवन की बाजी को बिगाड़ कर रख देती है। प्रवृत्ति का विषयानंद छोड़ोगे तभी निवृत्ति का नित्यानंद प्राप्त कर सकोगे।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).